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रांची हिंसाः प्रार्थी का हाईकोर्ट में दावा, सुनियोजित था उपद्रव; एनआईए जांच जरूरी

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रांचीः रांची में पिछले साल दस जून को हुई हिंसा से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से एनआईए जांच कराने के लिए दलील पेश की गयी। प्रार्थी पंकज यादव की ओर से शपथपत्र दाखिल कर बताया गया कि हिंसा पूर्व नियोजित थी।

हिंसा की योजना बनाने वाले बाहरी तत्व थे जिनका पीएफआई से ताल्लुक है। वर्ष 2019 में डोरंडा उपद्रव में जो लोग शामिल थे वही लोग रांची हिंसा की घटना में भी शामिल थे। इसलिए इसकी एनआईए से जांच जरूरी है।

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इसके बाद चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने मामले की विस्तृत सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की। इस मामले में एनआईए ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह इस घटना की जांच नहीं कर सकता, क्योंकि इस घटना में वैसा कुछ नहीं मिला है जिसकी जांच एनआईए करे।

प्रार्थी से पूछा एनआईए जांच जरूरी क्यों

इस पर कोर्ट ने प्रार्थी को यह बताने को कहा था कि घटना की एनआईए जांच क्यों जरूरी है।
पूर्व में सुनवाई के दौरान गृह सचिव और डीजीपी की ओर से अदालत को बताया गया था कि मामले की जांच जारी है।

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पुलिस और सीआईडी दोनों जांच कर रही है। कुछ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल किया गया है। जबकि प्रार्थी पंकज यादव की ओर से पक्ष रखते हुए अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा था कि सरकार हिंसा की मूल वजह को छिपाना चाह रही है।

पुलिस और सीआईडी दोनों जांच करायी जा रही है। सीआईडी भी राज्य सरकार का ही विंग है। सरकार की मंशा जांच को प्रभावित करना है। इसी कारण इस मामले की जांच करने वाले अनुसंधान अधिकारी का तबादला भी कर दिया गया है।

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प्रार्थी ने कहा कि दस जून की घटना में पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठन शामिल था। इस तरह के मामले की जांच एनआईए से करायी जानी चाहिए। दूसरे राज्यों में एनआईए जांच कर भी रहा है।

भाजपा नेता नुपूर शर्मा के बयान के बाद 10 जून 2022 को नमाज के बाद रांची में तोड़फोड़ की गयी थी। इसके बाद हिंसा हो गयी थी। हिंसा पर नियंत्रण के लिए पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी थी। पंकज कुमार यादव ने जनहित याचिका दायर कर एनआईए से जांच कराने का आग्रह किया है।

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Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

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