नया कानूनः ऑनलाइन उपभोक्ताओं को मिले कई अधिकार, जानिए नए संरक्षण कानून के बारे में

Advocate Vijaykant dubey
हाई कोर्ट के अधिवक्ता विजयकांत दुबे

बीस जुलाई से पूरे देश में उपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019 लागू हो गया है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने उपभोक्ता अधिकारों को सशक्त बनाने के लिए तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 को बदल दिया है। उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिए किसी वस्तु को हासिल करता है या व्यवसायिक उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। तो आइए समझते हैं पूरे कानून को…..


नए कानून में उपभोक्ताओं के हित में कई प्रावधान किए गए हैं। इसमें उपभोक्ताओं को कई अधिकार दिए गए हैं, जैसे ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना जो जीवन और संपत्ति के लिए जोखिम पूर्ण है। वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त करना, प्रतिस्पर्धा मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना, अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करना तथा उपभोक्ताओं को ज्यादा अधिकार देकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। इसमें ऑनलाइन व टेलिशॉपिंग कंपनियों को भी शामिल किया गया है। अब उपभोक्ता किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी के लिए विनिर्माता व सेवा प्रदाता कंपनियों के खिलाफ मामला दायर कर सकेंगे और उन्हें कड़ी सजा दिलवा सकेंगे। उपभोक्ताओं को अब ₹500000 (पांच लाख रुपये) तक की शिकायत दायर करने के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं होगी।

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इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की विशेषताओं की बात करें तो बहुत से ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिससे उपभोक्ता अधिकारों को और मजबूती मिलेगी। अब कहीं से भी उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज करा सकता था जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता है। मौजूदा ई-कॉमर्स से बढ़ते व्यापार को देखते हुए यह बहुत ही अच्छा कदम है, क्योंकि विक्रेता कहीं से भी अपनी सेवाएं देते हैं और अब उपभोक्ता के समक्ष भी कहीं से शिकायत कराने का प्रावधान है। यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि उपभोक्ता किसी अन्य लोकेशन पर चले गए हैं या किसी दूसरे शहर में रह रहे हैं तो वह अपनी शिकायत आयोग के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से रख सकेंगे।

उदाहरण के लिए समझें कि अगर एक उपभोक्ता जो रांची में नौकरी करता है और वह किसी जिम की सेवा लेता है। उसे जिम के सेवा प्रदाता से शिकायत है। कुछ दिनों के बाद उपभोक्ता का तबादला दूसरे स्थान पर हो जाता है। पहले के कानून के अनुसार उसे अपनी शिकायत रांची में ही कराने की मजबूरी थी, लेकिन नए कानून के तहत अब वह जहां नौकरी कर रहा है वहीं से शिकायत दर्ज करा सकता है।

पुराने और नए कानून में प्रमुख अंतर


उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 में अलग से किसी भी प्रकार के नियामक का प्रावधान नहीं था अब इसमें नियामक का प्रावधान है। पहले उपभोक्ता शिकायत सिर्फ वहीं दायर कर सकता था जहां विक्रेता का ऑफिस था। अब शिकायत वाद कहीं से भी दर्ज की जा सकती है। पूर्व के प्रावधान में उपभोक्ता को हुए नुकसान के हर्जाने का प्रावधान नहीं था। अब उपभोक्ता सेवा प्रदाता के खिलाफ हर्जाने की मांग कर सकता है। ई.कॉमर्स से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रावधान नहीं थे, नए कानून में ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर शिकंजा कसा गया है। पुराने कानून में मध्यस्थता के संबंध में किसी भी प्रकार के प्रावधान का उल्लेख नहीं था, अब मध्यस्थता को वैधानिक रूप दिया गया है।


उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 के अनुसार सेवा के अंतर्गत प्रमुख रूप से बैंकिंग, वित्तीय सेवा, बीमा, परिवहन, प्रोसेसिंग, ऊर्जा की आपूर्ति, ई.कॉमर्स, इंटरटेनमेंट, ऌमनोरंजन और एम्यूज़मेंट तथा अन्य सभी सेवाओं को भी शामिल किया गया है। पर इसके अंतर्गत वह सेवाएं शामिल नहीं है जो फ्री ऑफ चार्ज प्रदान की जाती है।
नए कानून में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी नामक केंद्रीय नियामक बनाने का प्रस्ताव है जो सीधे उपभोक्ताओं के अधिकारों, अनुचित व्यवहार, भ्रामक विज्ञापनों और नकली उत्पादों से जुड़े मामले को देखेगा। भ्रामक विज्ञापनों पर जुर्माना और ई.कॉमर्स तथा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की बिक्री करने वाली कंपनियों के लिए सख्त दिशा-निर्देश का प्रावधान किया गया है।
उपभोक्ताओं को शिकायत वाद दायर करने के लिए निर्धारित 2 वर्ष की समय सीमा यथावत है। यदि उपभोक्ता को किसी सेवा या सेवा प्रदाता के खिलाफ कोई शिकायत हो तो वह 2 वर्ष की समय सीमा के तहत शिकायत वाद दायर कर सकते हैं। इस अवधि के बाद भी शिकायत वाद दायर की जा सकती है यदि कोई तर्कसंगत कारण मौजूद हो और अदालत उसे सही मानती हो।

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नए कानून में जिला आयोग के क्षेत्राधिकार को भी बढ़ाया गया है क्योंकि अधिकांश मामले जिला स्तर पर ही दायर किए जाते हैं। पूर्व में जिला आयोग में बीस लाख रुपए तक, राज्य आयोग में बीस लाख से 1 करोड़ रुपए तक जबकि राष्ट्रीय आयोग में उससे अधिक के मामलों की सुनवाई किए जाने का प्रावधान था जबकि अब इस नये कानून में जिला आयोग में 1 करोड़ रुपए तक के विवाद को जबकि राज्य आयोग एक से 10 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय आयोग उससे अधिक के मामलों की सुनवाई कर सकेगी। जिला आयोग के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए पूर्व में निर्धारित 30 दिन की अवधि को बढ़ाकर 45 दिन कर दिया गया है। पूर्व में अपील दायर करने के लिए प्रतिवादी को अधिकतम ₹25000 की राशि जमा करनी होती थी, इस प्रावधान को हटा कर कुल राशि का 50 फीसद राशि जमा करने का प्रावधान किया गया है।


राष्ट्रीय आयोग में रिवीजन और सेकंड अपील भी दायर करने का प्रावधान है । यदि कुछ कानूनी बिंदुओं पर आदेश आना रह गया हो या उसकी व्याख्या नहीं की गई हो तो राष्ट्रीय आयोग में सेकंड अपील भी दायर की जा सकेगी। अब तीनों ही फोरम में उपभोक्ताओं के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करने का प्रावधान भी किया गया है। अब उपभोक्ता और विक्रेता के बीच के विवादों को मध्यस्थता के माध्यम से भी सुलझाए जाने का प्रावधान किया गया है। जिला उपभोक्ता आयोग के साथ मध्यस्थ को भी जोड़ा जाएगा जिससे यदि दोनों पक्ष सहमत हों तो विवाद का निपटारा मध्यस्थता के माध्यम से कराया जा सकता है और मामले को मध्यस्थ के समक्ष भेजा जा सकता है। जबकि पूर्व के कानून में इस तरह का कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं था।
उपभोक्ताओं की शिकायतों के निपटारे के क्रम में यदि केंद्रीय प्राधिकार को ऐसा महसूस होता है कि किसी संस्थान के सर्च और सीजर की आवश्यकता है तो नए कानून में इसका भी प्रावधान किया गया है। इस कानून में उत्पाद या सेवाओं में खामी पाए जाने पर उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा। जैसे यदि प्रेशर कुकर के फटने पर उपभोक्ता को चोट पहुंचती है तो उस हादसे के लिए कंपनी को हर्जाना देना पड़ेगा।

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पहले उपभोक्ता को केवल कुकर की लागत मिलती थी और हर्जाने के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पढ़ता था जिसमें वर्षों का समय जाया होता था। इस प्रावधान का सबसे ज्यादा असर ई- कॉमर्स पर होगा क्योंकि इसके दायरे में सेवा प्रदाता भी आएंगे। 2019 के कानून में ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसा गया है। नए प्रावधानों के अनुसार अमेज़न, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म को विक्रेताओं के बारे में विस्तृत ब्यौरा देना होगा। मसलन उनका नाम, पता, वेबसाइट, ईमेल एड्रेस आदि। अब ई-कॉमर्स फर्मों की ही जिम्मेदारी होगी कि वह सुनिश्चित करें कि उनके प्लेटफार्म पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री नहीं हो, अगर ऐसा होते पाया जाता है तो कंपनी पर पेनाल्टी लग सकती है।

नए उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रमुख प्रावधान


ई-कॉमर्स , ऑनलाइन ई-कॉमर्स डायरेक्ट सेलिंग और टेली शॉपिंग कंपनियां कानून के दायरे में आएंगी ।
नए कानून से उपभोक्ताओं की शिकायतों का त्वरित निष्पादन किया जा सकेगा।
भ्रामक विज्ञापन करने पर सेलिब्रिटी पर भी ₹1000000 तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति रहती है तथा उत्पादों में मिलावट के कारण उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन और मिलावट के लिए कठोर सजा का प्रावधान है।
उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया है।
कंज्यूमर प्रोटक्शन काउंसिल का गठन किया जाएगा।
शिकायतवाद कंजूमर फोरम में दायर की जा सकेगी।
मिलावटी सामान और खराब प्रोडक्ट पर जुर्माना और मुआवजा देने का प्रावधान है।
उपभोक्ता मध्यस्थता सेल का गठन होगा दोनों पक्ष आपसी सहमति से मध्यस्थता कर सकेंगे।

लेखक झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता हैं।

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