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संकट के दौर से गुजर रहा अधिवक्ता समुदाय, आर्थिक पैकेज की मांग

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अधिवक्ता विजयकांत दुबे


कोरोना काल में राज्य भर के लगभग 30,000 अधिवक्ताओं के बीच नए प्रकार की समस्याएं आ गई है। कोविड-19 के कारण लगभग 4 महीने से अदालती कार्यवाही सीमित हो गई है। राज्य की शीर्ष अदालत हाईकोर्ट से लेकर निचली अदालत तक अदालती कार्यवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चल रही है। लगभग सभी जिला बार संघ की ओर से नियमित अदालती कार्यवाही प्रारंभ करने की मांग की जा चुकी है इसका मुख्य कारण है अधिकांश अधिवक्ता और उनके साथ जुड़े कर्मचारी जैसे क्लर्क, स्टेनो, टाइपिस्ट आदि आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे है।

ऐसे समय में अधिवक्ताओं की ओर से दूसरे कार्य किए जाने की अनुमति की मांग कई राज्यों में की गई है क्योंकि एक्ट के अनुसार अधिवक्ता कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकते। कठिन दौर में जब लगभग हर वर्ग आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। अधिवक्ताओं की कल्याकारी संस्था सहित केंद्र सरकार को अधिवक्ता कल्याण के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि मौजूदा समस्या से अधिवक्ताओं को छुटकारा मिल सके।

एक तरफ कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है वहीं दूसरी तरफ अधिवक्ताओं को दिन प्रतिदिन आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। यदि सिर्फ झारखंड की बात करें पिछले 15 दिनों में कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तीव्र गति से लगभग सभी जिलों तक हुआ है। ऐसे में फिलहाल नियमित अदालती कार्यवाही प्रारंभ किए जाने की संभावना कम ही लगती है।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अदालती कार्यवाही चल तो रही है पर अधिवक्ता समुदाय का एक बड़ा वर्ग इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। कई अधिवक्ताओ को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई के दौरान तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार नेटवर्क कनेक्शन भी बड़ी समस्या बनकर सामने आती है। शत प्रतिशत अधिवक्ताओं के पास ऐसी तकनीक उपलब्ध नहीं है जिससे वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालती कार्यवाही में पूरी तरह से भाग ले सकें। हालांकि हाईकोर्ट ने हाई कोर्ट सहित जिला अदालतों में इस कमी को दूर करने का भरपूर प्रयास किया है अदालत परिसर में ही वैसे अधिवक्ताओं के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध कराई है जिनके पास ऐसी तकनीक नहीं है या जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में किसी प्रकार की कठिनाई महसूस करते हैं।

लॉकडाउन के प्रारंभ में कई जिला बार संघ ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद जरूरतमंद अधिवक्ताओं को आर्थिक मदद मुहैया कराई थी। लेकिन अब वह भी संसाधनों की कमी के कारण लगभग बंद कर दी गई है। सिर्फ अधिवक्ता कल्याण के लिए बनी संस्थाएं भी अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पायी हैं जिससे अधिवक्ताओं की समस्याओं को दूर किया जा सके या कुछ हद तक कम किया जा सके।।

ऐसी समस्या सिर्फ झारखंड में ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी देखने को मिली है। अधिवक्ताओं संघ व कल्याणकारी संस्थाओं ने सिर्फ अदालत और भारत सरकार को पत्र लिखकर इस प्रकार की समस्याओं को दूर करने के हर संभव कदम उठाने की मांग की है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तो केंद्र सरकार से देशभर के अधिवक्ताओं के लिए आर्थिक पैकेज दिए जाने की मांग की है। जरूरतमंद अधिवक्ताओं के लिए कम ब्याज पर ऋण दिए जाने की मांग भी की गई है।

लेखक झारखंड हाई कोर्ट में अधिवक्ता हैं।

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Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

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