निकला तीसरी बार विज्ञापन, फिर भी सूचना आयुक्तों की बहाली पर संशय
छह हजार से अधिक अपीलवाद सुनवाई को लंबित, मई से 65 कर्मियों को बैठाकर वेतन देने की नौबत
रांची। राज्य सूचना आयुक्तों की बहाली के लिए राज्य सरकार तीन वर्ष के अंदर तीन बार विज्ञापन निकाल चुकी है। इसके लिए काफी संख्या में आवेदन मिलने के बावजूद लापरवाही के कारण बहाली नहीं हो सकी है। झारखंड हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद इस दिशा में समुचित कदम नहीं उठाये गये, तब जबकि लंबे अरसे से सूचना आयुक्तों की कमी के कारण छह हजार से अधिक अपीलवाद सुनवाई के लिए लंबित हैं।
कार्यकारी मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी का कार्यकाल आठ मई को समाप्त हो गया। इसके बाद से कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इसमें कार्यरत करीब 65 अधिकारियों-कर्मचारियों को बैठाकर वेतन देना पड़ रहा है।
फरवरी 2017 में रघुवर दास के नेतृत्ववाली तत्कालीन रघुवर सरकार ने एक सूचना आयुक्त की बहाली का विज्ञापन निकाला था। उस समय कुल जमा 11 पदों के सापेक्ष दो जन मुख्य सूचना आयुक्त आदित्य स्वरूप के अलावा सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चैधरी कार्यरत थे। लंबे समय तक बहाली प्रक्रिया शुरू नहीं करने के बाद झारखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
अदालत के कड़े रूख के कारण उस सरकार ने सूचना आयुक्तों की बहाली के लिए दोबारा विज्ञापन प्रकाशित कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। बाद में सूचना आयुक्तों की सेवा शर्तों में संशोधन कर दिया गया। जब अकेले सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी कार्यरत रह गए तो एक सूचनाधिकार कार्यकर्ता ने एक बार पुनः झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सेवा शर्तों में संशोधन के कारण हेमंत सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त और पांच सूचना आयुक्तों की बहाली का विज्ञापन निकालकर अदालत को आश्वस्त किया कि बहाली प्रक्रिया शीघ्र पूरी कर ली जाएगी। इस संबंध में सरकार प्राप्त आवेदनों की सूची बनाने के सिवाय कुछ और नहीं कर सकी है।
बहाली पर निर्णय लेने की प्रक्रिया अपनाई जाय तो जल्दबाजी करने पर भी एक माह समय लग ही जाना है। अब एक नया पेंच यह भी फंस गया है कि राज्य में नेता प्रतिपक्ष पद पर स्पीकर ने किसी को मान्यता नहीं दी है, जबकि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कमिटी में नेता प्रतिपक्ष एक महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं। ऐसे में इस विषय पर जल्द बैठक की संभावना क्षीण है । इस संबंध में एक आवमानना याचिका भी हाईकोर्ट में दायर की गई है। कोविड-19 के कारण माननीय उच्च न्यायालय अति आवश्यक मामलों की सुनवाई कर रहा है इसलिए अब तक अवमानना याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी है।
जल्द ही यह उम्मीद की जाती है की हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई होगी और राज्य में सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों पर भर्ती की जा सकेगी। मई माह से राज्य सूचना आयोग में एक भी सदस्य नहीं है ऐसे में वहां कार्यरत लगभग 65 कर्मियों का वेतन निकासी भी एक समस्या है। दूसरी जो महत्वपूर्ण बात है की पिछले लगभग 3 महीनों से राज्य सरकार 65 कर्मियों को बगैर किसी काम के बिठाकर वेतन भुगतान कर रही है।
लेखक हाई कोर्ट के अधिवक्ता हैं।