नियमितीकरणः नियमावली कर्मियों के लाभ के लिए बनी है, तकनीकी मुद्दे उठाकर सरकार नहीं दे रही लाभ

Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. एसएन पाठक की अदालत में राज्य के विभिन्न विभागों में दस वर्षों से अधिक समय से संविदा पर काम करने वाले कर्मियों के नियमितीकरण को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई।

सुबह साढ़े दस बजे लेकर शाम चार बजे तक मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान प्रार्थियों की ओर से बहस पूरी कर ली गई। अब मामले में 23 अगस्त से राज्य सरकार की ओर से पक्ष रखा जाएगा।

इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में करीब 200 से याचिका दाखिल की गई है। जिसमें कुछ याचिकाओं में सरकार की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया था। अदालत ने उन याचिकाओं को अलग करने का निर्देश देते हुए अलग से सुनवाई करने की बात कही।

प्रार्थियों के लाभ के लिए बनी थी नियमितीकरण की नियमावली

मामले में प्रार्थियों की ओर से बहस प्रारंभ करते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य में वर्ष 2015 में नियमितीकरण के लिए नियमावली बनी थी।

राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में इस नियमावली में संशोधन भी किया गया। नियमावली के बनाने के पीछे यही उद्देश्य था कि दस साल से अधिक समय से कार्य करने वाले कर्मियों को नियमितीकरण का लाभ दिया जाए।

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लेकिन अब राज्य सरकार तकनीकी पहलुओं को उठाते हुए संविदा कर्मियों को नियमितीकरण का लाभ नहीं दे रही है। सभी कर्मियों ने संबंधित अपने विभाग में नियमितीकरण के लिए आवेदन दिया था।

लेकिन उनके आवेदन पर सरकार ने सही तरीके विचार नहीं किया और तकनीकी आधार पर उनकी नियमितीकरण के आवेदन को रद कर दिया।

सरकार यह कहते इनको नियमितीकरण का लाभ नहीं दे रही है कि कुछ कर्मियों की स्वीकृत पद पर नियुक्ति नहीं हुई। कुछ में सक्षम प्राधिकार ने नियुक्ति नहीं की है और कुछ में नियुक्तियों में गड़बड़ी की गई है।

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अदालत को बताया गया कि राज्य में कंप्यूटर आपरेटर वर्ष 2005 से काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निहाल सिंह केस में पारित आदेश में कहा गया है कि संविदा पर कार्यरत कर्मियों का नियमितीकरण होना चाहिए।

झारखंड हाईकोर्ट के नरेंद्र कुमार तिवारी बनाम झारखंड सरकार के मामले ऐसा ही आदेश पारित किया है। बशर्ते की कर्मियों पर किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं है।

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राज्य के सभी विभागों में अब कंप्यूटर आपरेटर के बिना कार्य निष्पादित होना असंभव है। इसलिए सभी को नियमित करना चाहिए।

इस संबंध में धारो उरांव सहित अन्य ने याचिका दाखिल की है। प्रार्थियों की ओर से अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण, मनोज टंडन, इंद्रजीत सिन्हा और अमृतांश वत्स ने पक्ष रखा।

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