फैसले को पलटने के लिए संसद में बिना बहस विधेयक पारित करने को सुप्रीम कोर्ट ने बताया गंभीर मुद्दा
New Delhi: Tribunals Reform Bill सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधिकरण सुधार विधेयक-2021 को संसद में बिना किसी बहस के पहले रद्द किए गए प्रावधानों के साथ पारित करने को ‘गंभीर मुद्दा’ करार दिया। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने बिना बहस के उक्त विधेयक को पारित करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उलटने को उचित ठहराने की कड़ी आलोचना की।
संसद द्वारा पारित न्यायाधिकरण सुधार विधेयक 2021, विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की सेवा और कार्यकाल के नियम व शर्तों से संबंधित है। इसके साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों, न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी का सामना कर रहे अर्ध-न्यायिक पैनलों (ट्रिब्यूनलों) में नियुक्ति करने के लिए केंद्र को 10 दिनों का समय दिया।
इस विधेयक के माध्यम से जस्टिस एलएन राव की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा हाल ही में खारिज किए गए कुछ प्रावधानों को पुनर्जीवित किया गया है। मद्रास बार एसोसिएशन व अन्य द्वारा दाखिल याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस राव की पीठ ने कुछ प्रावधान खारिज कर दिए थे।
इसे भी पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट के सामने आग लगाने वाली युवती दुष्कर्म पीड़िता, सांसद के खिलाफ दर्ज कराया है रेप का मामला
इस पर सीजेआई रमण ने कहा कि हमने दो दिन पहले देखा है कि कैसे इस अदालत द्वारा निरस्त प्रावधान को बहाल कर दिया गया है। हमें नहीं लगता कि संसद में इस पर कोई बहस हुई है। इसकी बहाली का कोई कारण नहीं दिया गया है। हमें संसद द्वारा कानून बनाने में निश्चित रूप से कोई दिक्कत नहीं है।
संसद को कोई भी कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन हमें कम से कम यह तो पता चलना चाहिए कि क्या कारण था कि सरकार फिर यह विधेयक लाई, जबकि इससे संबंधित अध्यादेश खारिज हो चुका था। मैंने अखबारों में पढ़ा है कि इस बारे में सिर्फ एक शब्द कहा गया है कि कोर्ट ने अध्यादेश को संवैधानिक तौर पर रद्द नहीं किया है।
इन टिप्पणियों के साथ ही सीजेआई ने मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को तय की। जस्टिस रमण की उक्त टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि 15 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित 75 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में बोलते हुए उन्होंने इसी मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि देश में कानून बनाने की प्रक्रिया बुरी स्थिति में है, क्योंकि संसद में बहस नहीं होने से कानूनों में कई खामियां हो रही हैं, जिसका खामियाजा अदालतों को भुगतना पड़ रहा है।