बाल अपराधी व पीड़ित की देखभाव और सुरक्षा की जरूरतः चीफ जस्टिस
रांचीः झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार मिश्रा ने कहा कि बाल अपराधी को भी सुरक्षा और देखभाल की जरूरत होती है। क्योंकि जिनके मां-बाप नहीं होते हैं। उन्हें कोई गाइड करने वाला नहीं होता और उन्हें शिक्षा नहीं मिलती है, तो वे अपराध करते हैं।
इसके अलावा और पीड़ित बच्चे को भी देखभाल और सुरक्षा की जरूरत होती है। क्योंकि ऐसा नहीं होने पर आगे चलकर वो अपराध कर सकता है। उन्होने कहा कि बाल अपराध पर काम करने वाले चार विंग में जागरूकता कमी है। इसलिए पहले उन्हें जागरूक होने की जरूरत है।
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जेजे (जूवेनाइल जस्टिस) एक्ट के बारे में पूरी जानकारी नहीं होने की वजह से आप बच्चों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। चीफ जस्टिस संजय कुमार ज्यूडिशियल एकेडमी में कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के रोकथाम, पुनर्स्थापनात्मक न्याय, विचलन और हिरासत के विकल्प पर राज्यस्तरीय सेमिनार पर लोगों को संबोधित कर रहे थे।
अपने संबोधन के दौरान चीफ जस्टिस ने पुलिस, मजिस्ट्रेट, बाल विभाग विभाग के अधिकारी और सीडब्ल्यूसी के सदस्यों से पूछा कि कितने लोगों ने जेजे एक्ट को पूरा पढ़ा है। पूरे हाल में सात लोगों ने एक्ट पूरा पढ़ने की बात कही।
बाल अपराधी को जमानत मिलना उसका अधिकार
इस पर उन्होंने कहा कि बच्चों को न्याय दिलाने में भागीदारी रखने वाले लोगों को पहले एक्ट को पूरा पढ़ना चाहिए। चीफ जस्टिस जेजे एक्ट की धारा 12 में जमानत देने के प्रविधान का उल्लेख करते हुए कहा कि पोक्सो सहित अन्य जजों को बाल अपराधियों की जमानत पर सुनवाई के लिए संवेदनशील होना चाहिए और उसके अनुसार ही उन्हें जमानत दी जानी चाहिए।
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जमानत किसी का अधिकार है और जेल जाना अपवाद है। उन्होंने की संचार के युग में मोबाइल पर पूरी दुनिया उपलब्ध है। वहां पर कुछ अच्छी चीजें और कुछ बूरी भी हैं। अगर कुछ होता है, तो जांच करने वाली बाल पुलिस, सीडब्ल्यूसी और जज को संवेदनशीलता के साथ मामलों से निपटना चाहिए।
कई बार देखा जाता है कि बच्चों को न्याय दिलाने वाली बाल पुलिस, सीडब्ल्यूसी, जेजे बोर्ड और बाल संरक्षण के लोग इस बात को लेकर आपस में उलझे रहते हैं कि आखिर इनमें बड़ा कौन है। सभी का काम अलग-अलग है। सभी को मिलकर बच्चों के विकास और सुरक्षा के लिए काम करना चाहिए।
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उन्होंने ओडिशा में रथयात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि एक दिन में पुरी शहर में एक करोड़ से ज्यादा लोग आते हैं और वहां आने बच्चों का मां-बाप से बिछड़ना आम बात है, लेकिन वहां के अधिकारियों ने ऐसी जगहों को चिह्नित करके बच्चों को बचाया है। अगर आपका पड़ोसी राज्य ऐसा करता है, तो झारखंड क्यों नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती को सभी को स्वीकार करना चाहिए।
बाल अपराध को रोकने से समाज में होगा सुधारः जस्टिस एसएस प्रसाद
हाई कोर्ट के जज सह जेजे व पोक्सो कमेटी के चेयरमैन जस्टिस एसएन प्रसाद ने कहा कि बाल अपराध को रोकने से समाज में सुधार होगा और यह देशहित में होगा। राज्य के सुदूर क्षेत्र में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। क्योंकि यहां पर मानव तस्करी होती है।
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इसके पीछे परिवार का शिक्षित नहीं होना है। वह परिवार चलाने के लिए बच्चों को दिल्ली सहित अन्य जगहों पर भेज देते हैं। बच्चों को सजा देना हमारा ध्येय नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें अपराध करने से रोकना होना चाहिए।
बाल सुधार गृह में बच्चों को जेल जैसी न हो अनुभवः कृपानंद झा
महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव कृपानंद झा ने कहा कि राज्य में बाल सुधार गृह के दिवारे इतनी ऊंची है, जैसे लगता है कि बच्चे सुधार गृह की बजाय जेल में बंद है। बच्चों को जेल में रहने जैसा एहसास नहीं होने देना हमारी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बाल अपराध अलग-अलग होत हैं। पेटी अपराध के लिए बच्चों को थाने से ही जमानत दे देनी चाहिए। उन्होंने केरल के दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि वहां बाल सुधार में अधिक से अधिक सात दिन तक बच्चा रहता है। वहां दिवार बहुत कम ऊंची है।
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जब उन्होंने वहां के लोगों से बच्चों के भागने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर वे सिर्फ थाना को जानकारी देते हैं। यहां पर बालसुधार गृह जाने पर वहां के लोग कहते है कि ये देखने में ही भोले-भाले हैं लेकिन बहुत शातिर हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे कभी शातिर नहीं होते हैं। इसलिए किसी को पहले से ऐसी धारणा के साथ काम नहीं करना चाहिए।
इस दौरान बाल सुधार गृह के बच्चों की ओर से बनाए गए समानों की प्रदशर्नी लगाई गई। इस दौरान चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा सहित अन्य जजों की ओर से इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया। कई लोगों ने प्रदर्शनी में समान भी खरीदा। उक्त राशि बच्चों को भेजी जाएगी। कार्यक्रम में जेजे व पोक्सो समिति के सचिव संजय कुमार, उप सचिव तन्या के सहित अन्य लोग मौजूद रहे।