Matrimonial Disputes: पति के परिवार को क्यूं घसीटा जा रहा..? सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश किया रद्द
New Delhi: Matrimonial Disputes दहेज उत्पीड़न के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला और एक पुरुष के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों में बार-बार पति के परिवार के सदस्यों को एफआइआर में यूं ही घसीटकर आरोपी बनाया जा रहा है।
जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें दहेज हत्या मामले में आरोपी मृतका के देवर और सास को समर्पण करने और जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया गया था।
अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों को एफआइआर में यूं ही नामों का उल्लेख करके प्रदर्शित किया गया है, जबकि विषय-वस्तु उनकी सक्रिय भागीदारी को उजागर नहीं करती, इसलिए उनके खिलाफ मामले का संज्ञान लेना उचित नहीं था।
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यह भी कहा गया है कि इस तरह के मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मृतका के पिता द्वारा दर्ज की गई शिकायत का अवलोकन करने से आरोपी की संलिप्तता को उजागर करने वाले किसी विशेष आरोप का संकेत नहीं मिलता।
मृतका के पिता ने 25 जुलाई, 2018 को गोरखपुर के कोतवाली थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी छोटी बेटी का पति, देवर, ननद और सास दहेज में चौपहिया वाहन और 10 लाख रुपये की लगातार मांग कर रहे थे। मांगें पूरी नहीं होने पर 24 जुलाई, 2018 की रात आरोपियों ने बेटी को पीटा और उसके गले में फंदा डालकर हत्या कर दी और फिर लटका दिया।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई थी। इसमें सर्वोच्च अदालत से निर्देश मांगा गया था कि शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले प्री मैरिटल काउंसलिंग अनिवार्य कराई जाए। गैर सरकारी संस्था नेशनल चाइल्ड डेवलपमेंट काउंसिल की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि सर्वोच्च अदालत केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह ऐसी नीति बनाए जिससे शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले प्री मैरिटल काउंसलिंग को सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अनिवार्य करें।