गबन मामले में वारंट के बाद भी 200 मीटर की दूरी नहीं तय कर पाए सरकारी अधिकारी, बरी हुए तीनों आरोपी
रांचीः रांची नगर निगम का सात लाख रुपये गबन से जुड़े मामले में मात्र दौ मीटर की दूरी पर सरकारी गवाह तय नहीं कर पाए। अंत में अदालत ने 28 साल बाद अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने मामले में सभी सरकारी सेवकों को पहले समन और फिर वारंट तक जारी किया। लेकिन इसका कोई असर गवाहों पर नहीं पड़ा।
गवाहों के नहीं आने का फायदा आरोपियों को मिला और अदालत ने गबन के आरोपी तीनों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि इस मामले में सभी गवाह सरकारी सेवक है। यहां तक कि इस मामले को एक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी ने दर्ज कराया है। मामले में तीन- तीन अनुसंधान पदाधिकारी हैं।
कोर्ट का नोटिस प्राप्त होने के बाद भी एक भी सरकारी सेवक गवाही देने के लिए हाजिर नहीं हुआ। अदालत ने मामले के तीन आरोपी दूधनाथ सिंह, प्रीतम कुमार और सुबोध कुमार को बरी कर दिया। मामले में तत्कालीन प्रशासक मृदुला सिन्हा सहित आठ गवाह सभी न्यायिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी गवाही देने अदालत तक नहीं पहुंच सके। अदालत ने गिरफ्तारी वारंट तक जारी किया था।
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मामले में संलिप्त एक अन्य आरोपित रघुपति प्रसाद कोर्ट से लगातार अनुपस्थित रहा। जिसे कोर्ट ने वर्ष 2007 में फरार घोषित कर दिया। मृदुला सिन्हा ने कोतवाली थाने में 1995 में गबन को लेकर फर्जी कंपनी इंडो नेपाल रोड ट्रांसपोर्ट, कारपोरेशन पटना, इसके संचालक और कर्मचारी दूधनाथ सिंह, रघुपति प्रसाद, प्रीतम कुमार और सुबोध कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
कोर्ट के ठीक पास में नगर निगम, नहीं पहुंचा कोई गवाह
गबन को लेकर प्राथमिकी की जांच कोतवाली थाने के तत्कालीन एएसआइ राम प्रसाद पासवान ने की थी। आरोप सही पाते हुए उक्त चारों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट में कुल आठ गवाह को सूचीबद्ध किया गया था।
इसमें नगर निगम के तत्कालीन प्रशासक मृदुला सिन्हा तथा लेखा शाखा के तत्कालीन लेखा पदाधिकारी संतलाल रौनियार, लेखा सहायक बसंत नारायण तिवारी, तत्कालीन सहायक अभियंता मोहन साहू और तत्कालीन मुख्य लेखा पदाधिकारी शशिकांत पंडित के अलावे तीन पुलिस पदाधिकारी हीरानंद राम, लक्ष्मण राय और राम प्रसाद पासवान बतौर गवाह नामित थे।
कोर्ट ने इन सभी गवाहों को अप्रैल 2019 से लेकर कोर्ट में हाजिर होकर गवाही देने के लिए समन, नोटिस और गिरफ्तारी वारंट तक जारी की। लेकिन सिविल कोर्ट से सटे रांची नगर निगम कार्यालय से उपरोक्त नामित एक भी गवाह कोर्ट में गवाही देने के लिए नहीं गए। जिसका फायदा तीनों आरोपियों को मिला।
फर्जी कंपनी के नाम पर गबन करने का आरोप
कोतवाली थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार रांची नगर निगम के तत्कालीन प्रशासक द्वारा 100 एवं 200 मेट्रिक टन अलकतरा की आपूर्ति करने के लिए 25 अप्रैल 1995 में पटना स्थित इंडो नेपाल रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन नामक कंपनी को आदेश दिया गया था। जिस के संचालक दूधनाथ सिंह थे।
अलकतरा की आपूर्ति करने के लिए उक्त कंपनी के संचालक दूधनाथ सिंह तथा प्रीतम कुमार के नाम से बैंक ड्राफ्ट द्वारा राशि का भुगतान किया गया था। लेकिन अलकतरा की आपूर्ति नहीं की गई। छानबीन करने पर पता चला कि उक्त कंपनी का अस्तित्व नहीं है। इसका कोई कार्यालय नहीं है और न ही रजिस्ट्रेशन है। फर्जी कंपनी है।