high court news

विस नियुक्ति घोटाला: हाई कोर्ट ने कहा- अगली तिथि को जांच रिपोर्ट पेश करें, नहीं तो उपस्थित होंगे विस सचिव

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Ranchi: झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ में झारखंड विधानसभा में नियुक्ति घोटाला की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं किए पर कड़ी नाराजगी जताई।

अदालत ने कहा कि अगली सुनवाई तक जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती है तो विधानसभा सचिव को अदालत के समक्ष सशरीर उपस्थित होना पड़ेगा। इस मामले में अब 16 अगस्त को सुनवाई होगी।

जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग ने विधानसभा नियुक्ति घोटाला की जांच की थी और इसकी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी थी। राज्यपाल ने इस पर कार्रवाई के लिए विधानसभा को भेजा था, लेकिन अभी तक नियुक्ति घोटाला में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

नियुक्ति घोटाला में तीन पूर्व विस अध्यक्षों पर लगा है आरोप

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, आलमगीर आलम और शशांक शेखर भोक्ता पर अपने कार्यकाल के दौरान नियुक्तियों में अनियमितता बरतने का आरोप है। इसके लिए तत्कालीन सरकार ने आयोग का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी थी।

जांच में अनियमितता की तो पुष्टि हुई। नियुक्तियों में अनियमितता कई स्तरों पर हुई है। इसमें बगैर योग्यता की बहाली, एक ही दिन में तकनीकी औपचारिकताएं पूरी करने समेत कई आरोप हैं। आरोपों के घेरे में कई अधिकारी भी आ सकते हैं। नियुक्तियों में जमकर भाई-भतीजावाद हुआ।

कई नेताओं के करीबी रिश्तेदार इसमें उपकृत हुए। प्रभावशाली लोगों के खिलाफ आरोपों होना भी इस पूरे प्रकरण में कार्रवाई नहीं होने का बड़ा कारण बताया जाता है। विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 और आलमगीर आलम के कार्यकाल में 324 लोगों की नियुक्ति हुई।

शशांक शेखर भोक्ता पर आरोप है कि उन्होंने गलत तरीके कर्मियों को प्रोन्नति दी। इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में पलामू जिले से 70 प्रतिशत लोगों की बहाली हुई। आलमगीर आलम के कार्यकाल में नियुक्तियों में पैसे की लेनदेन का भी मामला सामने आया था।

तत्कालीन महाधिवक्ता के अनुसार ठोस साक्ष्य नहीं

विधानसभा नियुक्ति घोटाला को लेकर गठित जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसा पर तत्कालीन महाधिवक्ता अजीत कुमार का सुझाव मांगा गया तो उनका निष्कर्ष स्पष्ट नहीं था। तत्कालीन महाधिवक्ता ने सुझाव दिया था कि इस प्रकरण में ठोस साक्ष्य नहीं है तो मुकदमा नहीं किया जा सकता। उनके मुताबिक नियुक्त किए गए कर्मियों को सर्विस रूल के तहत हटाना ठीक नहीं होगा। महाधिवक्ता ने यह भी जिक्र किया था कि उन्होंने रिपोर्ट देखा ही नहीं है।

बगैर लाइसेंस के बहाल हो गए ड्राइवर, उत्तर पत्र भी खाली

विधानसभा नियुक्ति घोटाले में सबसे अधिक धांधली चतुर्थवर्गीय कर्मियों की नियुक्ति में हुई। जस्टिस विक्रमादित्य आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे इंगित किया था। उत्तर पत्र खाली रहने के बावजूद नियुक्ति कर ली गई। ड्राइवरों की नियुक्ति में खूब अनियमितता हुई।

बगैर ड्राइविंग लाइसेंस वालों की नियुक्ति भी कर ली गई।पलामू के 12 लोगों को डाक से नियुक्ति पत्र भेजा गया, जो उन्हें दूसरे दिन ही मिल गया। उसी दिन सभी चयनित लोगों ने योगदान भी दे दिया। राज्यपाल के स्तर से अनुसेवक के 75 पद स्वीकृत किए गए थे। अधिकारी अमरकांत झा ने इसके मुकाबले 150 पदों पर नियुक्तियां कर दी।

Rate this post

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker