हाईकोर्ट ने कहा- काश..! डायन-बिसाही को रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठाती तो गुमला में पांच की हत्या नहीं होती

रांचीः झारखंड हाई कोर्ट गुमला में एक ही परिवार की पांच लोगों की हत्या के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि काश सरकार पहले ही डायन प्रथा को रोकने के लिए गंभीरता से कदम उठाती, तो गुमला में ऐसी घटना नहीं होती। इस घटना ने पूरे देश में राज्य का सिर शर्म से झुका दिया है।

चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने कहा कि गुमला में हुए पांच लोगों की हत्या बहुत दुखद है। यदि इस तरह की घटना को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा जा रहे हैं, तो हमें अपने-अपने पदों पर बने रहने का अधिकार नहीं है।

डायन-बिसाही बताकर गुमला में हुए एक परिवार को पांच लोगों की धारदार हथियार से हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रही है और राज्य सरकार से इस मामले में जवाब मांगा था।

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया। इसमें कहा गया कि पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठन किया गया है। अब तक दस आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। डीजीपी ने सभी जिलों के एसपी को त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

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एसएसपी को नोडल पदाधिकारी बनाया गया है और ऐसी घटनाओं में कार्रवाई के लिए एसओपी भी बनाया गया है। पूरे राज्य में डायन-बिसाही को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इस तरह के मामलों में जिला जज से समन्वय कर आरोपियों को त्वरित सजा दिलाने को कहा गया है।

सरकार की ओर से दाखिल शपथ पत्र का अदालत ने अवलोकन किया और इसे पर्याप्त नहीं बताते हुए फिर से सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। इस मामले में कनीय अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल करने पर भी कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए सचिव को शपथ पत्र दाखिल करने को कहा।

अदातल ने सरकार को यह बताने को कहा है कि डायन-बिसाही के मामलों को रोकने के लिए राज्य सरकार के विजन क्या है। डायन प्रथा निषेध अधिनियम को प्रभावी तरीके से लागू करने की सरकार की क्या योजना है। इस पर सरकार को विस्तृत जवाब अदालत में पेश करना है।

मामले में आठ अप्रैल को सुनवाई होगी और अदालत ने सुनवाई के दौरान समाजिक कल्याण सचिव को ऑनलाइन हाजिर होने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि हम सभी पर समाज में व्याप्त इस तरह की कुरीतियों को रोकने उत्तरदायित्य है।

समाज के साथ-साथ अधिवक्ता समाज को इसे जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए और डायन-बिसाही हिंसा को खत्म करने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इस मामले में अदालत ने झालसा से पूछा है कि राज्य में डायन प्रथा के खिलाफ कितने प्रोग्राम चलाए जा रहा है।

अब तक कितने स्कूलों में लीगल क्लिनीक खोले गए हैं, जिसमें कितने लीगल कैडेट कॉर्प बनाए गए हैं। झालसा का राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में इस तरह के कार्यक्रम चलाने की क्या योजना है। इस पर भी झालसा को हाई कोर्ट में जवाब दाखिल करना है।

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