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Death of Elephants: हाईकोर्ट ने पूछा- पांच सालों में कितने हाथी मरे, सरकार दे जवाब

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Ranchi: Death of Elephants झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने लातेहार जिले में हाथियों की मौत मामले में स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य में भले ही जंगल में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन जंगलों से वन्य जीव गायब होना दुखद है। जंगल वन्य जीवों के बिना विधवा की तरह है। जब सभी जीव जंगल में रहते हैं, तभी पर्यावरण का संतुलन बना रहता है।

अदालत ने सरकार से हाथियों और दूसरे वन्य जीवों को संरक्षित रखने और जंगलों में वापस लाने की कार्ययोजना मांगी है। अदालत ने सरकार से पूछा है कि राज्य में पिछले पांच सालों में कितने हाथियों की मौत हुई है। कितनों का पोस्टमार्टम हुआ है। कितनों का बिसरा जांच के लिए भेजा गया और उनकी रिपोर्ट आई है। अदालत ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट दो सप्ताह में अदालत में पेश करने का निर्देश दिया है।

मामले में अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी। अदालत ने अगली तिथि को वन सचिव को अदालत ने कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया है। हालांकि कोर्ट के पूर्व निर्देश के आलोक में सुनवाई के दौरान पीसीसीएफ, सीसीएफ और लातेहार के डीएफओ अदालत में आनलाइन हाजिर हुए। सुनवाई के दौरान अदालत ने अधिकारियों से कहा कि जानवरों के बिना जंगल नहीं हो सकता।

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राज्य सरकार बताए कि जानवरों को जंगल में वापस लाने के लिए क्या कार्ययोजना बनी है। हमने विकास करते समय जंगलों का ध्यान नहीं रखा। जिसका दुष्परिणाम है कि जंगल में अब जानवर ही नहीं बचे हैं। तीन दिनों तक जानवरों के शव पड़े रहते हैं और उनको खाने वाले एक भी जानवर जंगल में नहीं है। इससे पता चलता है कि जंगल व जानवरों की रखवाली करने वाले सही से काम नहीं कर रहे हैं।

इतनी दयनीय स्थिति है और वन विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि 678 हाथी अभी राज्य में है, जो काफी है। यह अफसोसजनक है। अदालत ने कहा कि हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाना चाहिए था। ताकि उनका आवागमन सुलभ हो। अदालत ने कहा कि सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार हर साल करीब 14 से 16 हाथियों की मौत होती है। लेकिन इनकी मौत के कारणों के बारे में कभी जानने की कोशिश नहीं की गई।

अदालत ने हजारीबाग का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें बताया गया कि हजारीबाग का नाम इसलिए पड़ा कि यहां पर हजारो बाघ रहते थे और आज भी उन्हें पकड़ने के लिए ट्रैप लगाया गया है। पहले के राजा उनका शिकार करते थे। इसका मतलब है कि झारखंड के जंगलों में सभी वन्य जीव रहा करते थे। चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्होंने खुद किशोर अवस्था में यहां के जानवरों को देखा है।

इस मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता हेमंत सिकरवार ने जंगलों में अवैध खनन का मुद्दा उठाया। उन्होंने अदालत को बताया कि जंगलों में अवैध खनन भी किया जा रहा है। इस कारण भी वन्य जीव पलायन कर रहे हैं और उनकी संख्या कम हो रही है। अदालत ने इस पर सहमति जताई और कहा कि जब जंगल में खनन होगा तो वहां जानवर कैसे रह सकते हैं।

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Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

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