मुश्किल में जनप्रतिनिधिः सांसदों-विधायकों के खिलाफ 121 मामले सुनवाई के लिए लंबित, 58 में हो सकती है आजीवन कारावास

New Delhi: MP-MLA Case सुप्रीम कोर्ट में एक मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील व न्याय मित्र विजय हंसारिया ने सुझाव दिया है कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश या हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति गठित की जाए जो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच में देरी के कारणों का मूल्यांकन करेगी। 

शीर्ष अदालत से कहा गया है कि समिति में सीबीआई और ईडी के प्रमुख और गृह सचिव भी शामिल हों। समिति जांच को समय पर पूरा करने के लिए निर्देश जारी कर सकती है। हंसारिया ने अदालत को बताया कि देश भर की विशेष सीबीआई अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ कुल 121 मामले लंबित हैं। 58 मामलों में आजीवन कारावास का प्रावधान है।

हंसारिया ने शीर्ष अदालत को एक स्थिति रिपोर्ट में बताया है कि पूर्व और मौजूदा सांसदों व विधायकों के खिलाफ सीबीआई के 37 मामलों की जांच अभी लंबित है। इसके अलावा अदालत के सामने 121 लंबित मामलों में से लगभग एक तिहाई मुकदमे बेहद धीमी गति से चल रहे हैं क्योंकि उनमें आरोप अभी तक तय नहीं किए जा सके हैं, जबकि ये अपराध कई साल पहले हुए थे।

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न्याय मित्र ने यह रिपोर्ट 2016 में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर दाखिल की है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में मौजूदा और पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष सीबीआई अदालतों में लंबित 121 मामलों में से 45 मामलों में आरोप भी तय नहीं किए गए हैं।

रिपोर्ट में देश के विभिन्न हिस्सों में सीबीआई अदालतों के समक्ष लंबित कई मामलों में अत्यधिक देरी पर प्रकाश डाला गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत 51 संसद सदस्य (सांसद व पूर्व सांसद) आरोपी हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि कितने वर्तमान सांसद हैं और कितने पूर्व सांसद हैं। 

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जिन अदालतों के समक्ष मुकदमे अभी लंबित हैं, उन्हें आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-309 के तहत सभी लंबित मामलों में रोजाना सुनवाई कर कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया जा सकता है। साथ ही रिपोर्ट में शीर्ष अदालत से लंबित जांच में तेजी लाने के लिए दो सप्ताह के भीतर एक निगरानी समिति का गठन करने के लिए कहा गया है। 

इसने यह भी कहा कि यदि अतिरिक्त अदालतों की आवश्यकता है तो हाईकोर्ट और संबंधित राज्य सरकार को ऐसी अदालतों का गठन करना चाहिए। सीबीआई को सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी वकील स्थगन की मांग न करें और गवाह निर्धारित तारीखों पर पेश किए जाएं। यदि आरोपी व्यक्ति मुकदमे में सहयोग न करें तो अदालत जमानत रद्द करने पर विचार कर सकती है। 

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