High Court: झारखंड हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि निचली अदालतें जमानती वारंट का निष्पादन किए बिना गिरफ्तारी का गैर जमानती वारंट जारी नहीं कर सकतीं। आदेश जारी करने वाली अदालतों को पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 82 की कार्यवाही करने के पहले यह तय कर ले कि आरोपी फरार था या गिरफ्तारी से बचने के लिए छिप रहा था। जस्टिस एके चौधरी की अदालत ने यह आदेश देते हुए प्रार्थी विशाल कुमार के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि प्रार्थी के खिलाफ गिरफ्तारी का जमानती वारंट जारी किया गया था, लेकिन गिरफ्तारी के जमानती वारंट के निष्पादन रिपोर्ट के बिना ही मजिस्ट्रेट कोर्ट ने गिरफ्तारी का गैर-जमानती वारंट जारी किया है, जो कानून में भी टिकने योग्य नहीं है। क्योंकि कानून का यह एक स्थापित सिद्धांत है कि एक बार गिरफ्तारी का जमानती वारंट जारी करने के बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि गिरफ्तारी का गैर-जमानती वारंट जारी करने जैसी और कठोर कार्रवाई करने से पहले गिरफ्तारी के जमानती वारंट की निष्पादन रिपोर्ट प्राप्त हो जाए। दरअसल रांची सिविल कोर्ट ने विशाल कुमार के खिलाफ पहले जमानती वारंट जारी किया था जिसके बाद कोर्ट ने गैरजमानती वारंट भी जारी कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौकी दी गयी थी।