सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि महत्वपूर्ण आपराधिक मामलों में संदेह की गुंजाइश की स्थिति में अधीनस्थ कोर्ट के न्यायाधीश जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। सीजेआई ने हर मामले की बारीकियों पर गौर करने के लिए सामान्य समझ और विवेक का इस्तेमाल करने की जरूरत पर बल दिया।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जिन लोगों को निचली अदालतों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां राहत नहीं मिल रही। परिणामस्वरूप उन्हें हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है। जिन लोगों को उच्च न्यायालयों से राहत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें वहां जमानत मिल जाए और इस कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ता है। यह देरी उन लोगों की समस्या को और बढ़ा देती है, जो मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं। सीजेआई तुलनात्मक समानता और भेदभाव-रोधी बर्कले केंद्र के 11वें वार्षिक सम्मेलन में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। सवाल मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों पर पूछा गया था।
प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति ने कहा, हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां पहले कृत्य किया जाता है और बाद में माफी मांग ली जाती है। यह बात विशेष रूप से उन लोक प्राधिकारियों के लिए सच हो गई है, जो राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और यहां तक कि विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों समेत नेताओं को हिरासत में ले रहे हैं। सीजेआई ने इसके जवाब में कहा, उच्चतम न्यायालय लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इसका एक कारण देश में संस्थाओं के प्रति अंतर्निहित अविश्वास भी है।
जलवायु परिवर्तन से बच्चों, दिव्यांगों पर खतरा
सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं, बच्चों, दिव्यांग व्यक्तियों और मूल निवासियों को विस्थापन, स्वास्थ्य समस्याओं व खाद्यान्न की कमी सहित गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन मौजूदा असमानताओं को बढ़ाता है तथा इसे मानवाधिकारों के मुद्दे में बदल देता है, जो विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है, जिनके अधिकारों से पहले ही समझौता किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि तापमान वृद्धि का प्रभाव गरीब और कमजोर वर्ग पर अधिक पड़ रहा है। ं
राहत को संदेह की नजर से देखा जा रहा
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि दुर्भाग्यवश आज समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों द्वारा दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। मतलब यह कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। न्यायाधीशों को हर मामले की बारीकियों व सूक्ष्मताओं को देखना होगा। ज्यादातर मामले उच्चतम न्यायालय में आने ही नहीं चाहिए। सीजेआई ने कहा, हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं, ताकि पूरे देश में यह संदेश जाए कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे प्रारंभिक स्तर पर मौजूद लोगों (न्यायिक अधिकारियों) को यह विचार किए बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है।