Murder case: चार साल के बच्चे के दस्तखत 12 की उम्र में भी हूबहू, ऐसा देख सुप्रीम कोर्ट हैरान

New Delhi: Murder case क्या चार साल का कोई बच्चा कक्षा एक में प्रवेश लेते वक्त खुद फॉर्म पर दस्तखत कर सकता है? क्या यह दस्तखत 12 साल की उम्र में कक्षा आठ के फॉर्म में भी हूबहू बने रह सकते हैं? ऐसा एक वाकया देख कर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई।

मामला दो हत्याओं का है, जिसमें किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) बागपत ने अपचारी को नाबालिग घोषित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कई खामियां सामने आने के बाद मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। मृतकों में से एक के बेटे ऋषिपाल सोलंकी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि पांच मई 2020 को उसके पिता व चाचा की हत्या कर दी गई।

वे उस समय अपने खेत से ट्रॉलियों में गन्ना भर कर बागपत की चीनी मिल ले जा रहे थे। ट्रॉली खराब होने पर उसे सड़क किनारे रोक कर ठीक करने लगे। उसी समय क्षेत्रीय लोगों से कुछ विवाद हुआ, जिसके बाद दोनों की हत्या कर दी गई। हत्या करने वाले एक आरोपी ने खुद को नाबालिग बता कर जेजेबी से अर्जी दी, जो स्वीकार हुई।

सोलंकी ने सत्र न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की, जो खारिज हो गईं। याची के अनुसार अपचारी इस घटना के समय बालिग था, उसकी चिकित्सकीय जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील न करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में माना अपचारी ठहराए गए व्यक्ति के दस्तावेजों में कई विसंगतियां हैं।

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उसने 2009 में कक्षा एक में प्रवेश लिया। इस हिसाब से 2014 में उसे कक्षा पांच या छह में होना चाहिए, लेकिन खुद को नाबालिग बताने के लिए दिए दस्तावेजों के अनुसार 2014 में उसने कक्षा आठ का फॉर्म भरा। वह बहुत मेधावी होता तो शायद उसे तीन कक्षा आगे प्रमोट कर दिया जाता। वहीं 2014 में कक्षा आठ पास करने पर 2016 में उसे दसवीं में होना चाहिए था। लेकिन उसने 2019 में दसवीं पास की, यह उसके मेधावी होने पर संशय पैदा करता है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि चार साल का बच्चा कक्षा एक में कैसे प्रवेश ले सकता है? उसे तो आंगनबाड़ी में होना चाहिए। संभव है कि उसके दस्तावेज फर्जी ढंग से बनाए गए हैं। इस पर अपचारी के वकील ने कहा कि दस्तावेजों में खामी नहीं है, मिड-डे मील के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावक बच्चों को स्कूल में एडमिशन करवा देते हैं।

वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार एक बार जेजेबी ने दसवीं के प्रमाणपत्र के आधार पर बच्चे को नाबालिग करार दे दिया तो फिर वही निर्णय अंतिम रहता है। लेकिन इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट राजी नहीं हुई, उसने कहा कि जेजेबी ने आदेश में विस्तृत वजहें नहीं लिखी हैं। वह खुद मामले पर आदेश जारी करेगी। इसके लिए सभी पक्षों को दो दिन में लिखित जवाब रखने को कहा गया है।

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