रांची। झारखंड हाईकोर्ट वित्तीय अनियमितता एक मामले में अधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अनुमति नहीं दिए जाने पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने पूछा है कि जब एसीबी प्राथमिकी की अनुमति मांगी है, तो अनुमति देने में देरी क्यों हो रही है। अदालत में सोमवार को वर्ष 2009 में पाकुड़ और देवघर जिले में सड़क निर्माण में हुई वित्तीय अनियमितता के मामले में दाखिल एलपीए याचिका पर सुनवाई हुई।
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एसीबी के अधिवक्ता टीएन वर्मा ने अदालत को बताया कि इस मामले की शिकायत के बाद एसीबी ने प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज कर जांच की। अनियमितता की पुष्टि होने पर
एसीबी ने ग्रामीण विकास विभाग को पत्र लिखकर प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति देने का अनुरोध किया लेकिन विभाग की ओर से अनुमित नहीं मिलने के कारण अभी तक भी इस मामले में केस दर्ज नहीं किया जा सका है। पूर्व में कोर्ट ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं होने पर एसीबी से जवाब मांगा था।
इसके बाद अदालत ने महाधिवक्ता से पूछा कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी क्यों हुई है। अदालत ने सरकार को इस पर विस्तृत जवाब अदालत में पेश करने को कहा है। गौरतलब है कि सड़क निर्माण में अनियमितता के आरोपी तत्कालीन कार्यपालक अभियंता पारस कुमार और कनीय अभियंता अनिल कुमार ने एसीबी के जांच को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने वर्ष 2017 में उनकी याचिका को खारिज कर दी। एकल पीठ के आदेश को इन्होंने खंडपीठ में चुनौती दी है। मामले में अगली सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी।