इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पति-पत्नी अगर अपने रिश्ते से नाखुश हैं, तो उन्हें साथ रहने के लिए विवश करना क्रूरता होगी। अदालत ने यह भी कहा कि लंबे समय से अलग रह रहे जोड़े को एकसाथ लाने के बजाय उनका तलाक कर देना अधिक जनहित में है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पति की तलाक की याचिका खारिज करने के आदेश को रद कर दिया है। साथ ही दोनों के बीच हुए विवाह को भंग कर दिया है। कोर्ट ने स्थाई विवाह विच्छेद के एवज में पति को 3 महीने में एक करोड़ रुपए पत्नी को देने का भी निर्देश दिया है।
पति की वार्षिक आय 2 करोड़ है। कोर्ट ने कहा कि अगर आदेश का पालन नहीं हुआ तो 6 फीसदी ब्याज देना होगा। यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस एसडी सिंह और जस्टिस एके एस देशवाल की खंडपीठ ने अशोक झा की प्रथम अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
समझौते की गुंजाइश खत्म हो गई हैः इलाहाबाद हाई कोर्ट
बेंच ने कहा कि दंपति 10 साल से अधिक समय से अलग रह रहा है। साथ ही पत्नी द्वारा पति के खिलाफ आपराधिक शिकायतों समेत कई शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के केस में पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की।
प्रार्थी अदालत से बरी कर दिया गया। दोनों ने ही आरोप प्रत्यारोप लगाए। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि समझौते की गुंजाइश खत्म हो गई है। झूठे केस कायम किए गए। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि झूठे केस में फंसाना क्रूरता है।
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