NLU फंड नहीं देने पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणीः कोर्ट के आदेश की परवाह नहीं, क्या न्यायपालिका से टकराव चाहती है सरकार

Ranchi: National Law University funds झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को फंड देने के मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान फंड देने के मसले पर सरकार के रवैये में बदलाव नहीं होने पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार की हठधर्मिता से प्रतीत होता है कि वह यूनिवर्सिटी को अनुदान देना ही नहीं चाहती।

ऐसा लगता है कि सरकार को हाईकोर्ट के आदेश की कोई परवाह नहीं है और वह न्यायपालिक से टकराव चाहती है। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा को बरकरार रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। सरकार को यह बात नहीं भूलनी चाहिए। सरकार के रवैये से तो अब ऐसा लगता है कि वह न्यायपालिका से सीधा टकराव चाहती है।

अदालत यह चाहती है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार यूनिवर्सिटी को अनुदान प्रदान करे। लेकिन सरकार अपने रैवये में कोई बदलाव नहीं ला रही है। जबकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फंड नहीं देने के शपथ पत्र को दो बार खारिज कर चुकी है। इस संबंध में बार एसोसिएशन की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई है।

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार को शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था, लेकिन शपथपत्र दाखिल नहीं किया गया है। शपथपत्र दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय चाहिए। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की। अदालत ने कहा कि पहले भी कई बार सरकार को स्पष्ट कहा गया है कि वह एनएलयू को नियमित फंड दे जैसा कि दूसरी राज्य सरकार दे रही है।

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लेकिन अदालत के कई बार निर्देश दिए जाने के बाद भी सरकार के रवैये में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। यह फंड देने के मामले पर शपथपत्र दाखिल नहीं कर रही है और हर बार समय मांग जा रहा है। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी सरकार का यह रवैया उचित प्रतीत नहीं हो रहा है। इससे साफ है कि राज्य सरकार न्यायपालिका के साथ टकराव चाहती है।

अदालत ने कहा नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर सरकार इतने महत्वपूर्ण संस्थान को नहीं चलाना चाहती है, तो इस बंद कर दिया जाए। क्योंकि यहां पर आधारभूत संरचना नहीं होने के वजह से बार के बच्चे पढ़ने नहीं आएंगे। यहां पर राज्य के छात्रों के लिए पचास प्रतिशत सीट भी आरक्षित है। ऐसे में सरकार को फंड देना चाहिए। अदालत ने पटना के चाणक्य एकेडमी का जिक्र किया।

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने पूरी संरचना तैयार की है और कई सालों तक लगातार फंड देती रही। अदालत ने कहा कि जिस एक्ट के तहत यूनिवर्सिटी का गठन किया गया है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि इसे चलाने के लिए सरकार, बार कौंसिल, बार एसोसिएशन और अन्य से आर्थिक मदद मिलेगी। ऐसे में सरकार यूनिवर्सिटी की आर्थिक मदद करने से इन्कार नहीं कर सकती।

इस दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि नैक से ग्रांट दिया जा सकता है। लेकिन उसके लिए लाइब्रेरी, हास्टल सहित अन्य सुविधाएं होनी चाहिए। इसका सर्वे करने के बाद नैक की ओर से फंड दिया जा सकता है। इस दौरान सरकार का कहना है कि यूनिवर्सिटी के गठन के लिए सरकार को सिर्फ 50 करोड़ देना था। सरकार ने 50 करोड़ का भुगतान कर दिया है। इसके बाद भी यूनिवर्सिटी को 54 करोड़ अतिरिक्त दिया गया है। अब सरकार इसे अतिरिक्त राशि नहीं दे सकती।

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