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नेता-अफसर ही क्यों, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज भी दें अपनी संपत्ति का ब्योरा, संसदीय कमेटी की सिफारिश

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कानून और न्याय को लेकर बनाई गई संसदीय स्थायी समिति ने न्यायिक व्यवस्था को लेकर कई सिफारिशें की हैं। समिति ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए भी संपत्ति की जानकारी देने अनिवार्य कर देना चाहिए।

जिस तरह से नेताओं और अफसरों को अपनी संपत्ति की जानकारी देनी पड़ती है, जजों को भी देनी चाहिए। इससे सिस्टम में लोगों का विश्वास बढ़ेगा।

भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले पैनल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्ताव दिया था कि सभी जजों को अपनी इच्छा से संपत्ति का ब्योरा देना है। हालांकि यह ठीक नहीं है।

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जजों की संपत्ति का ब्योरा के लिए बने कानून

सरकार को इस बारे में कानून लाना चाहिए और जजों के लिए इसे अनिवार्य बाना चाहए। हर साल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज अनिवार्य रूप से असेट और लायबिलिटी की जानकारी दें।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात करते हुए कमिटी ने कहा कि जो लोग लोकसभा या फिर विधानसभा के चुनाव में खड़े होते हैं उनकी संपत्ति के बारे में जानने का अधिकार जनता को दिया गया है।

यह तर्क नहीं समझ में आता कि जजों के लिए संपत्ति की जानकारी देना जरूरी क्यों नहीं है। अगर कोई सरकारी पद पर है और जनता के कर से सैलरी ले रहा है तो उसे अपनी संपत्ति का सालाना रिटर्न फाइल करना चाहिए।

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लंबित मामलों पर भी समिति ने जताई चिंता

पैनल ने न्यायालय में बडी़ संख्या में लंबित मामलों पर चिंता जताते हुए कहा कि जजों की छुट्टियां काटने पर भी विचार किया जाना चाहिए। न्यायापालिका में छुट्टियों का सिस्टम अंग्रेजों के जमाने से एक जैसा ही चला आ रहा है।

जब पूरा कोर्ट एक साथ छुट्टी पर चला जाता है तो बेहद असुविधा होती है और सारे काम रुक जाते हैं। इसलिए सलाह है कि सभी जज एक साथ छुट्टी पर ना जाकर बारी-बारी से जाएं। अगर जज अलग-अलग समय पर छुट्टी लेंगे तो कोर्ट चलता रहेगा और न्याय में देरी नहीं होगी।

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महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को आरक्षण

पैलन ने यह भी सिफारिश की है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए जिससे हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो सके। देश की संवैधानिक अदालत में देश की विविधता नजर आनी चाहिए।

वहीं पैनल ने कहा कि हायर जूडिशरी में जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा देनी चाहिए। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय शाखाएं भी शुरू करनी चाहिए जिससे गरीबों के लिए न्याय पाना आसान हो।

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Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

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