ज्वलंत मुद्दा: कोरोना संक्रमण काल में झारखंड की न्यायिक व्यवस्था
कोरोनावायरस का संक्रमण लगभग संपूर्ण विश्व मैं फैल चुका है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में अब तक कोरोनावायरस के लगभग 15 लाख के हो चुके हैं। यदि हम झारखंड की बात करें तो यहां भी कोरोनावायरस तेजी से फैल रहा है। राज्य में यह आंकड़ा लगभग 9000 के करीब पहुंच चुका है पिछले 1 महीने में यह संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैल रहा है।
ऐसे समय में जब पूरे देश में संपूर्ण व्यवस्था कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के मानकों के साथ कार्य कर रही हैं तब न्यायिक व्यवस्था भी किसी से पीछे नहीं है। झारखंड में लॉकडाउन के समय से ही कमोबेश न्यायिक व्यवस्था कार्य कर रही है कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि संपूर्ण न्यायिक प्रणाली को बंद कर दिया गया है और ऐसा किया भी नहीं जाना चाहिए। आम जनों का विश्वास और भरोसा मौजूदा दौर में न्यायपालिका पर ही है। ऐसे समय में न्यायपालिका को भी आगे बढ़कर लोगों के भरोसे को कायम रखने के लिए कार्यरत रहना चाहिए।
झारखंड की न्यायिक प्रणाली ने इस दौरान बड़े ही बेहतर तरीके से अपने कार्यों का संपादन किया है। कोरोना काल में वर्चुअल कोर्ट सिस्टम लागू किया गया। इसे ना सिर्फ राज्य की शीर्ष न्यायपालिका उच्च न्यायालय बल्कि जिला स्तर तक इसे लागू किया गया। कार्य में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था पर समय के साथ इसे भी दूर कर लिया गया और फिलहाल वर्चुअल व्यवस्था पूरे राज्य में सही तरीके से कार्य कर रही है। उच्च न्यायालय ने इस दौरान नियमों में कई छूट दी जिससे मामले दायर करने में लोगों को सहूलियत हो। इस दौरान झारखंड की न्यायपालिका ने देश के अन्य राज्यों से बेहतर कार्य करने की कोशिश की है। यदि सिर्फ लॉकडाउन के प्रारंभ से लेकर अब तक दायर मुकदमा और उसके निष्पादन की बात करें तो इसमें भी झारखंड की न्याय प्रणाली बहुत बेहतर है।
लगभग 10,000 से अधिक मुकदमे दायर किए गए और 80 फ़ीसदी मामलों का निष्पादन कोरोनावायरस के संक्रमण काल के दौरान वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से कर दिया गया। उत्कृष्ट इसलिए भी कहा जा सकता है कि जब पूरे देश में कोरोनावायरस के कारण लॉक डाउन की मांग हो रही है। झारखंड की न्यायपालिका ने लगभग पूरी ताक से काम करने की कोशिश की है। लॉकडाउन के काल में ऐसा दौर था जब दो डिवीजन बेंच और लगभग 12 एकल पीठ बैठकर मामलों की सुनवाई कर रही थी। अब जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में कोरोनावायरस हाई कोर्ट में भी अपने पांव फैलाने प्रारंभ किए हैं। तब हाईकोर्ट में आंशिक ग्रीष्मावकाश जो पूर्व में निलंबित रखा गया था उसे लागू कर दिया गया है। इस दौरान भी अदालत पूर्ण रूप से बंद नहीं रहेगी। बल्कि ग्रीष्मकालीन बेंच बैठेगी और आवश्यक मामलों की सुनवाई की जाएगी।
राज्य की शीर्ष अदालत ने इस दौरान अपनी संवेदनशीलता भी दिखाई है और राज्य सरकार को कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए और इससे बचाव के लिए हर संभव आवश्यक दिशा निर्देश उठाने के निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट इस मामले की मॉनिटरिंग भी कर रहा है जो बहुत ही अच्छी पहल है। हालांकि यह प्रमुख रूप से राज्य सरकारों का काम है कि वह अपने कार्य को बेहतर तरीके से करें क्योंकि राज्य की मौजूदा संसाधन और स्थिति को राज्य सरकार ही बेहतर तरीके से समझ सकती है। ऐसे में नीति निर्माण का कार्य राज्य सरकार का है और यदि राज्य सरकार सही तरीके से उसे लागू करें तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप की आवश्यकता न हो।
लेखक झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता हैं।