नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने विकास परियोजनाओं की भेंट चढ़ने वाले पेड़ों के मूल्य को आंकने के लिए सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी पेड़ों के आर्थिक मूल्यांकन के लिए वैज्ञानिक एवं नीतिगत दिशा-निर्देश सुझाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब भी किसी परियोजना के लिए पेड़ों को गिराने की जरूरत पड़ती है, तब यह प्रश्न खड़ा होता है कि संबंधित संगठन या प्राधिकरण कितने न्यायसंगत तरीके से उसके लिए मुआवजा तय कर सकता है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि इस बात में हमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे मुआवजे की गणना होनी चाहिए और परियोजना की लागत के तौर पर इनका भुगतान किया जाना चाहिए।
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ऐसी मुआवजे की राशि का प्रयोग निश्चित तौर पर बेहतर पर्यावरण की दिशा में होना चाहिए। विशेष तौर पर उसका इस्तेमाल वनीकरण को बढ़ाने में होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने वन्यजीव विशेषज्ञ एवं वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एमके रंजीत सिंह झाला की अगुआई में सात सदस्यीय कमेटी गठित की है।
कमेटी में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव जिग्मेत ताकपा और इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च के डायरेक्टर जनरल अरुण सिंह रावत भी शामिल रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस पेड़ को गिराने की अनुमति दी जाए, उसके वास्तविक आर्थिक मूल्य का आकलन जरूरी है।
इसमें पर्यावरण पर उसके प्रभाव के मूल्य और उसकी आयु को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस गणना में ऑक्सीजन उत्पादन, कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने, भू-संरक्षण, जीव-जंतुओं के संरक्षण समेत अन्य महत्वपूर्ण फैक्टर को ध्यान में रखना चाहिए।