रांची। झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारियों को डिप्टी कलेक्टर की नियुक्ति में आरक्षण का लाभ देने के एकलपीठ के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। अदालत ने इस मामले में विस्तृत सुनवाई के लिए तीन नवंबर की तिथि निर्धारित की है। सरकार ने एकलपीठ को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जानकारी के अनुसार अखिलेश प्रसाद व मनोज कुमार की नियुक्ति संयुक्त बिहार में हुई थी।
झारखंड राज्य बनने के बाद इन्होंने झारखंड कैडर में ज्वाइन किया। जेपीएससी ने सरकारी सेवा के लोगों के लिए वर्ष 2010 में लिमिटेड डिप्टी कलेक्टर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला। इसके लिए इन्होंने भी आवेदन दिया था। लेकिन जेपीएससी ने इनके आवेदन को निरस्त कर दिया। उनका कहना था कि सरकार की अधिसूचना के तहत नई नियुक्ति में आरक्षण लेने के लिए यहां की जाति प्रमाण पत्र और आवासीय प्रमाण पत्र देना होगा।
अखिलेश प्रसाद ने आयोग को न तो जाति प्रमाण पत्र दिया और न ही आवासीय प्रमाण पत्र। जबकि मनोज कुमार के आवेदन को जेपीएससी ने सरकार को भेजते हुए कहा कि इस पर सरकार ही निर्णय ले। इसके बाद सरकार ने आवेदन को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि प्रोन्नति में इन्हें आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है, लेकिन नई नियुक्ति में नहीं और डिप्टी कलेक्टर की नई नियुक्ति की जा रही है। इसके बाद इन लोगों ने एकलपीठ में याचिका दाखिल की।
सुनवाई के बाद एकलपीठ ने इन्हें आरक्षण का लाभ देने का आदेश दिया। इसके बाद सरकार इसके खिलाफ खंडपीठ में याचिका दाखिल करते हुए एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाने की मांग की। खंडपीठ ने सरकार के आग्रह को निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया, लेकिन इस मामले हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि आदेश की प्रति मिलने के दो माह में इस मामले का निष्पादन किया जाए। इसके बाद सोमवार को हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई है। जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल व प्रिंस कुमार सिंह ने पैरवी की।