निचली अदालत के फैसले से हाईकोर्ट टिप्पणी, दुष्कर्म और उसकी कोशिश में फर्क नहीं जानते तो जज को ट्रेनिंग की जरूरत

Patna: पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने बलात्कार के एक मामले में आरोपी को जुर्माना देने के साथ-साथ 10 साल के सश्रम कारावास के निचली अदालत के फैसले पर सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस बीरेंद्र कुमार की अदालत ने ट्रायल कोर्ट के जज के फैसले को अलग रखते हुए उनके लिए विशेष प्रशिक्षण की सिफारिश की है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें पॉक्सो कानून की ट्रेनिंग देने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने बिहार ज्यूडिशियल एकेडमी के निदेशक को ट्रायल कोर्ट के आदेश की प्रति को भेजने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि न्यायिक अधिकारियों को विशेष ट्रेनिंग दी जाए जिससे आगे इसे दोहराया नहीं जा सके।

जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने कहा कि ट्रायल के दौरान पेश किए गए सबूतों से आरोपी पर कोई अपराध साबित नहीं हो रहा। आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले, जिसमें निचली अदालत ने फैसला सुनाया है। ऐसे में कोर्ट ने अपने फैसले में स्वर्गीय जगजीत सिंह के गजल और संस्कृत के श्लोक लिखकर इस संदर्भ में ट्रायल कोर्ट के जज की खिंचाई की। हाई कोर्ट ने आरोपी को दोष मुक्त करते हुए बरी कर दिया। इस संबंध में दीपक महतो की ओर से हाई कोर्ट में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी।

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दरअसल, 13 साल लड़की ने 17 जून, 2018 को पश्चिम चंपारण के इनरवा पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराया। इसमें दीपक महतो पर बलात्कार का आरोप लगाया। सीआरपीसी की धारा 164 तहत एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज अपने बयान में लड़की ने आरोप लगाया कि दीपक महतो ने उसके साथ रेप का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सका। पुलिस ने बच्ची से बलात्कार के प्रयास के आरोप में आरोपी के खिलाफ चार्जशीट पेश की। महतो को 14 जून, 2019 को 2 लाख रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल की की सजा सुनाई गई। कोर्ट ने उसे पीड़ित को 1 लाख रुपये की राशि देने का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने प्राथमिकी और धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में परस्पर विरोधी तथ्यों को स्वीकार किया, लेकिन किसी भी ठोस सबूत का जिक्र नहीं कर सकी। 15 जून, 2019 को पश्चिम चंपारण के बेतिया में पॉक्सो कोर्ट का फैसला आया, जिसमें दीपक महतो को दोषी करार दिया गया था। दीपक महतो ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उसे आरोपों से मुक्त करते हुए बरी कर दिया। पीठ ने फैसला सुनाने वाले ट्रायल कोर्ट जज ज्यूडिशियल अकादमी में विशेष प्रशिक्षण देने को कहा है।

हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में पीड़िता की मां और परिजन निचली अदालत में सुनवाई के दौरान अपनी बातों से मुकर गए। खुद पीड़िता ने भी कोर्ट में आरोपी को पहचानने से इन्कार कर दिया। यही नहीं इस केस में पीड़िता का मेडिकल करने वाले डॉक्टरों की भी गवाही नहीं हुई। ऐसे में सबूतों के अभाव पर निचली अदालत के फैसले पर हाईकोर्ट ने आश्चर्य जताया और कहा कि कोर्ट सहानभूति से नहीं चलती है।

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