नई दिल्लीः मराठा आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिका पर दस दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। 9 दिसंबर को महाराष्ट्र में नौकरी और एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक पर सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव से मना कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा को 12 फीसदी से लेकर 13 फीसदी तक आरक्षण देने की बात की थी। जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले में सुनवाई की और फिर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में कहा था कि वह इस बात का परीक्षण करेगी कि क्या 1992 में दिए गए इंदिरा साहनी जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत है या नहीं, क्या इंदिरा साहनी जजमेंट को लार्जर बेंच भेजे जाने की जरूरत है या नहीं। इस बात को सुप्रीम कोर्ट देखेगा।
इंदिरा साहनी जजमेंट में रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की सीमा तय की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तमाम राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा है कि क्या विधायिका इस बात को लेकर सक्षम है कि वह आरक्षण देने के लिए किसी जाति विशेष को सामााजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित कर सके।
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सुप्रीम कोर्ट 102 संशोधन की व्याख्या के सवाल को भी देखेगा जिसमें विशेष कम्युनिटी को आरक्षण देने का प्रावधान है और उसका नाम राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए लिस्ट में होता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 102 वां संविधान संशोधन संवैधानिक है।
सॉलिसिटर जनरल ने भी अटॉर्नी की दलील के साथ जाने की बात कही। वहीं सुनवाई के दौरान सिद्धार्थ भटनागर ने कहा कि इंदिरा साहनी जजमेंट में 9 जजों में से 8 ने कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी होगी और ये बाध्यकारी है।
वहीं, एडवोकेट बीएच मारलापले ने कहा कि महाराष्ट्र से लोकसभा की 48 सीट हैं इनमें 9 रिजर्व कैटगरी की है और बाकी 39 में 2014 में 20 मराठा जीते थे और 2019 में 39 में 21 मराठा जीते। महाराष्ट्र कैबिनेट मे 42 में 21 मराठा हैं। मराठा को कभी ओबीसी नहीं माना गया।
उन्होंने कहा कि जहां तक अति विशेष परिस्थिति में रिजर्वेशन देने का सवाल है तो मराठा कम्युनिटी प्रभावशाली कम्युनिटी है और ऐसे में अति विशेष परिस्थितियों वाला तर्क इनके लिए लागू नहीं होता है। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।