रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को फंड देने मामले में राज्य सरकार की ओर से सकारात्मक पहल नहीं किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई।
कोर्ट ने मौखिक कहा कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को सुविधा दिलाने के मामले में किसी तरह के कंप्रोमाइज की गुंजाइश नहीं है। झारखंड को छोड़कर अन्य राज्यों को अपने राज्य में स्थापित लॉ यूनिवर्सिटी को वित्तीय सहायता देने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।
झारखंड में राज्य सरकार नेशनल लॉ कॉलेज के लिये 50 करोड़ रुपये की एकमुश्त राशि देकर अपने जिम्मेदारी से भागना चाहती है। जबकि राज्य सरकार को नियमानुसार नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को प्राथमिकता के तौर सबसे पहले उसे वित्तीय सहायता देनी चाहिए।
जिससे लॉ यूनिवर्सिटी बेहतर ढंग से चल सके। राज्य सरकार को इस नेशनल लॉ यूनिवसिर्टी की अगर जरूरत नहीं है, तो इसे बंद कर दे। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को स्वपोषित संस्थान बताया गया है।
इसे वित्तीय सहायता देने में राज्य सरकार का नाम सबसे पहले है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजीव सिन्हा से भी जानना चाहा कि केंद्र सरकार की ओर से नेशनल लॉ कॉलेज को वित्तीय सहायता देने के लिए क्या किया गया।
अदालत ने मौखिक कहा कि राज्य के अन्य विश्वविद्यालय की तरह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को मासिक या वार्षिक रूप से फंड मिलना चाहिए। सिर्फ फीस के सहारे इस संस्थान को चलाया नहीं जा सकता है।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरी, अच्छी फैक्लटी सहित कई आधारभूत सुविधाएं अबतक उपलब्ध नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकार की ओर नेशनल लॉ यूनिवसिर्ट के काम के लिए उसे 50 करोड़ रुपये कई बार में मिला था।
लॉ यूनिवर्सिटी के काम में सीपीडब्ल्यूडी का 82 करोड़ रुपये खर्च हुआ। लॉ यूनिवर्सिटी के निर्माण पर अब बकाया ब्याज सहित 38 करोड़ सीपीडब्ल्यूडी को देना है।
मामले में राज्य सरकार की ओर से दो सप्ताह का समय दिया गया। कोर्ट ने सुनवाई की तिथि 26 फरवरी निर्धारित की। केंद्र सरकार को भी शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया।