शीतकालीन अवकाश के बाद दो जनवरी को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट खुला वरिष्ठ वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के फैसले का मुद्दा उठाया और उसमें भाई-भतीजावाद का आरोप लगाकर उस फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया।
मैथ्यूज नेदुम्परा और अन्य ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि जजों के रिश्तेदारों को अदालत द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया जा रहा है।
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस पर वकील नेदुम्परा को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि आप कितने न्यायाधीशों का नाम बता सकते हैं, जिनके बच्चों को वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया है। जज के इस सवाल पर वकील नेदुम्परा ने खंडपीठ के सामने अपने दावे के समर्थन में एक चार्ट पेश किया लेकिन खंडपीठ ने उसे मानने से इनकार कर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय इस दलील से सहमत नहीं है। इसलिए याचिका से आरोपों को हटा लें। कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसा करने में विफल रहने की स्थिति में कार्रवाई की जी सकती है। पीठ ने कहा, “हम आपको याचिका में संशोधन करने की स्वतंत्रता दे रहे हैं और अगर इसमें संशोधन नहीं किया जाता है तो हम तदनुसार कदम उठाएंगे।”
इस पर वरिष्ठ वकील नेदुम्परा ने दलील दी कि बार एसोसिएशन न्यायाधीशों से डरता है, इसलिए इस मामले को नहीं उठा रहा तो इस पर जस्टिस गवई भड़क गए और वकील के इस तर्क पर कड़ी आपत्ति जताई।
जस्टिस गवई ने तपाक से कहा, “श्रीमान नेदुम्परा, यह न्यायालय है। यह बंबई (मुंबई) का कोई बोट क्लब या आजाद मैदान नहीं है जहां भाषण दिए जाएं। इसलिए, जब आप अदालत में पेश हों, तो कानूनी दलीलें दें। सिर्फ तारीफें बटोरने के लिये बातें नहीं करें।”
जस्टिस गवई सीजेआई संजीव खन्ना के बाद इसी साल मई में देश के नए मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, आखिरकार, न्यायालय ने वरिष्ठ वकील को अपने दलीलों पर विचार करने और याचिका में संशोधन करने का समय दे दिया। खंडपीठ ने याचिका से सह आवेदक वकील को भी मानहानि का केस झेलने को तैयार रहने को चेतावनी दी