आसाराम के बेटे नारायण साई को सुप्रीम से बड़ा झटका, फरलो का आदेश खारिज

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से आसाराम (Asaram) के बेटे और रेप के दोषी नारायण साई (Narayan Sai) को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के दोषी नारायण साई को 14 दिन की फरलो (फर्लो) दिए जाने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने नारायण साई को फरलो देने के हाईकोर्ट के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि फरलो कोई पूर्ण अधिकार नहीं हैं और इसे देना कई कारकों पर निर्भर करता है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि साई की कोठरी से एक मोबाइल फोन मिला था, इसलिए जेल अधीक्षक ने राय दी थी कि उसे फरलो नहीं दी जानी चाहिए। बता दें कि नारायण साई बलात्कार के एक मामले में दोषी है और वह आजीवन उम्रकैद की सजा काट रहा है। बता दें कि 24 जून को गुजरात हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नारायण साई को फरलो दे दी थी।

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इससे पहले दिसंबर 2020 में नारायण साई को हाईकोर्ट ने मां के खराब स्वास्थ्य के कारण छुट्टी दे दी गई थी। 26 अप्रैल, 2019 को, नारायण साई को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (साजिश) के तहत सूरत की एक अदालत ने दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

नारायण साई के खिलाफ सूरत की एक युवती ने 6 अक्टूबर 2013 को जहांगीरपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया था कि जब वह आसाराम की साधिका थी, तभी 2002 से 2005 के बीच साई ने उसके साथ यहां स्थित आश्रम में उससे कई बार दुष्कर्म किया था।

पीडि़ता की बड़ी बहन ने भी उसी दिन आसाराम के खिलाफ भी ऐसा ही आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। उसका कहना था कि आसाराम ने वर्ष 1997 से 2006 के बीच अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम में उससे दुष्कर्म किया था।

फरलो के बारे में आपको बताते हैं। यह पैरोल से थोड़ा अलग होता है। यहां फरलो का मतलब जेल से मिलने वाली छुट्‌टी से है। यह पारिवारिक, व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। एक साल में कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। मगर इसकी कुल अवधि 7 सप्ताह से ज्यादा नहीं होनी चाहिए

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