राज्य के अस्पतालों और नर्सिंग होम से निकलने वाले कचरों को पूरी तरह निष्पादित करने के निदेशक प्रमुख (स्वास्थ्य सेवाएं) के शपथपत्र पर हाईकोर्ट ने मंगलवार को असंतोष जताया। जस्टिस आर मुखोपाध्याय और जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने मौखिक कहा कि निदेशक प्रमुख का दावा है कि राज्य के 1633 निजी और सरकारी अस्पतालों और नर्सिंग होम से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट निष्पादित कर दी जा रही है। बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट के साथ इन सभी 1633 नर्सिंग होम का करार है, जिससे उनके मेडिकल वेस्ट का प्रतिदिन उठाव किया जाता है। जबकि नर्सिंग होम के निकट सड़कों पर मेडिकल वेस्ट पड़े रहते हैं, बायोमेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल नहीं होता है। रिम्स जैसे संस्थान में भी मेडिकल वेस्ट अस्पताल के कॉरिडोर में फेंके रहते हैं।
कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि प्राइवेट एवं पब्लिक नर्सिंग होम से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के निष्पादन को कंट्रोल करने के लिए क्या तंत्र है। क्या जिलों के सिविल सर्जन द्वारा अस्पतालों एवं नर्सिंग होम के मेडिकल वेस्ट का निष्पादन हो रहा है या नहीं इसका निरीक्षण समय-समय पर किया जाता है। सुनवाई के दौरान लोहरदगा में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट संचालित करने वाले हस्तक्षेपकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर लिया है, लेकिन कोई नर्सिंग होम मेडिकल वेस्ट उठाव के लिए उनसे संपर्क नहीं करता है। इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई में उन्हें निदेशक प्रमुख के मेडिकल वेस्ट उठाव के लिए नर्सिंग होम के साथ किए गए करार के संबंध में दिए गए चार्ट के आलोक में कितने नर्सिंग होम ने उनके साथ टाइ-अप किया है इसकी जानकारी देने को कहा।