कोलकाता के हॉस्पिटल में तोड़फोड़ पर हाईकोर्ट सख्त, कहा- ये सरकार की नाकामी, अस्पताल बंद कर देंगे
कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज में तोड़फोड़ की घटना राज्य मशीनरी की पूर्ण विफलता है। उधर, डॉक्टर की हत्या और दुष्कर्म मामले में सीबीआई ने जांच तेज कर दी है। जांच एजेंसी ने पूछताछ के लिए संदिग्ध 30 लोगों की सूची बनाई है।
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि कि अगर 7,000 लोग इकट्ठा होने वाले हैं तो यह मानना बहुत मुश्किल है कि राज्य पुलिस की खुफिया इकाई को इसकी जानकारी नहीं थी। अस्पताल में मरम्मत कार्य करने की जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए पीठ ने कहा कि क्या अस्पताल को बंद कर दें और मरीजों को दूसरे अस्पताल में भेज दें।
अस्पताल पहुंची सीबीआई मामले की जांच का जिम्मा संभाल रही सीबीआई ने घटनास्थल का डिजिटल खाका तैयार करने के लिए अस्पताल पहुंची। जांच एजेंसी की टीम सटीक परिणाम वाले 3डी लेजर स्कैनर लाई थी।
कोलकाता के अस्पताल में हुए दिलदहला देने वाली घटना ने देशभर में विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक विवादों को जन्म दिया है, जिसमें गुरुवार को प्रदर्शन के दौरान भीड़ और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुईं और अस्पताल के कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ की गई।
अदालत द्वारा तोड़फोड़ पर सवाल पूछे जाने पर राज्य सरकार ने बताया, “…वहां करीब 7,000 की भीड़ थी। संख्या अचानक बढ़ गई… हमारे पास वीडियो हैं। उन्होंने बैरिकेड्स तोड़ दिए… आंसू गैस के गोले छोड़े गए और 15 पुलिसकर्मी घायल हुए। डिप्टी कमिश्नर घायल हुए। पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। हॉस्पिटल के इमरजेंसी रूम में तोड़फोड़ की गई (लेकिन) घटना स्थल (अपराध स्थल) सुरक्षित था।”
पुलिस के खुफिया विभाग को भनक क्यों नहीं लगी?
हाईकोर्ट ने पुलिस और अस्पताल प्रशासन को पहले की सुनवाई में भी फटकार लगाई थी, जब डॉक्टर के माता-पिता ने लापरवाही का आरोप लगाया था। चीफ जस्टिस टीएस शिवज्ञानम की अगुवाई वाली बेंच ने सवाल किया कि इतनी संवेदनशील स्थिति में सार्वजनिक विरोध की अनुमति क्यों दी गई। आमतौर पर पुलिस की खुफिया शाखा होती है… हनुमान जयंती पर भी इसी तरह की चीजें हुई थीं। अगर 7,000 लोग इकट्ठा होने वाले हैं, तो कैसे मान लें कि पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी।
बंगाल सरकार ने जवाब दिया- कोई अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा कि उस समय धारा 144 लागू थी। आपको उस क्षेत्र को बंद कर देना चाहिए था। अदालत ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा, “यह राज्य मशीनरी की पूर्ण विफलता है… तो वे (पुलिस) अपने ही लोगों की रक्षा नहीं कर सके? यह दुखद स्थिति है। डॉक्टर वहां कैसे निडर होकर काम करेंगे?”
सरकार ने बार-बार कहा- अपराध स्थल सुरक्षित है
इस बीच, माता-पिता की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकील बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि पुलिस “प्रदर्शनकारियों के पीछे छिपी हुई थी” और दावा किया कि एक गलतफहमी और पुलिस की कार्रवाई नहीं, बल्कि अपराध स्थल को तोड़फोड़ से बचा सकी। उन्होंने कहा, “ये गुंडे तीसरी मंजिल खोजने गए थे.. तीसरी मंजिल का मतलब बंगाली में चौथी मंजिल है, जो कि घटना स्थल था।
उन्होंने गलत समझा और दूसरी मंजिल पर चले गए, जिससे अपराध स्थल बच गया। राज्य मशीनरी विफल रही… अपराध स्थल आरजी कर हॉस्पिटल था और पुलिस इसे बचा नहीं सकी।” मृतका के माता-पिता के वकील ने अपराध स्थल के पास चल रहे निर्माण/मरम्मत कार्य पर भी सवाल उठाया, जिसके बारे में अस्पताल प्रशासन ने कहा कि यह पहले से ही योजना के तहत था और इसका अपराध से कोई संबंध नहीं है।
अदालत ने पूछा, “इसमें इतनी जल्दी क्या थी… आप किसी भी जिला अदालत में जाएं… महिलाओं के लिए कोई शौचालय नहीं है। पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) कुछ नहीं करता… यहां इसकी क्या जरूरत थी?” अंत में अदालत ने चेतावनी दी- “हम अस्पताल बंद कर देंगे। हम सभी को स्थानांतरित कर देंगे। वहां कितने मरीज हैं?” अदालत ने राज्य सरकार को बार-बार आश्वासन दिया कि “अपराध स्थल सुरक्षित है।”