New Delhi: दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने एक मामले में कहा कि हमारे समाज में अच्छे और बुरे के बीच हमेशा लड़ाई रही है। हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है और सब कुछ संभव है। जिला सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि हमारा अनुभव रहा है कि लोग असंख्य कारणों से झूठे आरोप लगाते हैं और जातीय घृणा इसमें से एक है।
इसके साथ ही अदालत ने जातीय घृणा के चलते चार बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले में फंसाए गए एक दलित व्यक्ति को बरी करने का आदेश दिया। अदालत ने इस तरह के संगीन आरोप लगाने वाले बच्चियों के पिता को भी कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि बड़ी बेशर्म तरीके से बच्चियों का इस्तेमाल किया है।
अदालत ने मामले की गंभीरता से जांच नहीं करने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि जांच ढुलमुल तरीके से की गई और इसमें वस्तुनिष्ठता की कमी है। जांच अधिकारी की गवाही से पता चलता है कि वह आरोपियों के खिलाफ अपनी जांच में निष्पक्षता दिखाने के लिए अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह से विफल रहा।
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अदालत ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि दो महीने के अंदर पीड़ित परिवार को एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। अदालत ने कहा कि यह मुआवजा प्रतीकात्मक है और यह कानून के तहत मिलने वाली मुआवजे से अलग होगा। इस मामले में व्यक्ति 18 मई, 2015 से जेल में था।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि यह फर्जी मामला है और उन्हें फंसाया गया है क्योंकि वह दलित समुदाय से है और शिकायत करने वाले उच्च जाति से है। शिकायतकर्ता के कुत्ते द्वारा बार-बार घर के बाहर शौच करने को लेकर कई बार झगड़ा हुआ था।
अदालत ने दलील को सही ठहराते हुए कहा कि कुत्तों द्वारा घर के बाहर शौच के कारण हुए झगड़े के चलते ही यौन शोषण के मामले में फंसा दिया, क्योंकि वह दलित समुदाय से संबंध रखता है। अदालत ने कहा कि पीड़ित बच्चियों के बयान से स्पष्ट है कि उन्होंने अपने माता-पिता के इशारे पर यौन उत्पीउ़न का आरोप लगाया है।