वाणिज्यिक विवाद सुलझाने के लिए बदलेगा मध्यस्थता कानून, मसौदा तैयार, मांगा सुझाव
नई दिल्ली/ Ranchi: देश में निवेशकों को लुभाने और कारोबार की राह आसान करने के लिए केंद्र सरकार वाणिज्यिक विवादों को सुलझाने में अदालत की भूमिका कम करने और वैकल्पिक समाधान प्रक्रिया मध्यस्थता को मजबूत करने जा रही है। इसके लिए ‘मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996’ में बड़े पैमाने पर संशोधन करने की तैयारी है। सरकार के इस कदम से अदालतों में सालों तक चलते वाले लंबित वाणिज्यिक मुकदमों के बोझ को भी कम करने में मदद मिलेगी।
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने मध्यस्थता कानून में बदलाव के लिए मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम 2024 का मसौदा तैयार किया है। कानून मंत्रालय के विधि कार्य विभाग द्वारा तैयार इस मसौदे के मुताबिक मूल कानून की धारा 34 में बदलाव किया जा रहा है ताकि मध्यस्थता प्रक्रिया के तहत होने वाले फैसले/आवार्ड के खिलाफ अपील अदालत में दाखिल नहीं हो। संशोधन के जरिए अपील दाखिल करने के लिए अपीलीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण का प्रावधान करके संस्थागत मध्यस्थता की प्रक्रिया को मजबूत करने का प्रस्ताव किया गया है। इस बदलाव से पक्षकारों/विवादकर्ताओं को अदालतों में जाए बगैर मध्यस्थता के जरिए घोषित आवार्ड/फैसले के खिलाफ अपील करने का विकल्प मिलेगा।
आपातकालीन मध्यस्थता के प्रावधान शामिल प्रस्ताव के मुताबिक अब इस कानून को मध्यस्थता अधिनियम कहा जाएगा। संशोधन में विवादकर्ताओं को अंतरिम राहत देने के लिए आपातकालीन मध्यस्थता के प्रावधान को भी शामिल किया जा रहा है। यह वाणिज्यिक मामलों से जुड़े विवादों के समाधान में तेजी ला सकता है। कानून के संशोधन में भारतीय मध्यस्थता परिषद (एसीआई) को और सशक्त बनाने पर भी जोर दिया जा रहा है, जो 2019 में तंत्र को विनियमित करने के लिए अतिरिक्त शक्तियों के साथ बनाई गई एक संस्था है। हालांकि, पांच साल बीत जाने के बाद भी एसीआई का गठन अभी तक नहीं सका है।
अधिकारी बोले, संशोधनों के लिए मसौदा तैयार
कानून मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्र ने कारोबार/व्यापार की राह को आसान करने और अनुबंधों के प्रवर्तन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 में और संशोधनों के लिए मसौदा तैयार है। उन्होंने कहा कि कानून में संशोधन का मकसद संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देने के साथ मध्यस्थता प्रक्रिया में अदालत के हस्तक्षेप को कम करना और मध्यस्थता कार्यवाही का समय पर निष्कर्ष सुनिश्चित करना है। कानून में संशोधन के लिए मसौदे पर सभी हितधारकों से सुझाव और आपत्तियां मांगी है, इसके बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।