New Delhi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता अहम है और जमानत (Bail) की अर्जी पर जितनी जल्दी मुमकिन हो सुनवाई की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी से पूर्व और गिरफ्तारी के बाद जमानत के लिए दाखिल होने वाले आवेदन के लिए कोई सीमा तय नहीं की जा सकती है, लेकिन कम से कम यह आशा की जा सकती है कि ऐसी आवेदनों पर जल्द से जल्द सुनवाई की जाए।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ पंजाब के पटियाला जिले में दर्ज एक मामले के सिलसिले में आरोपी की याचिका की सुनवाई कर रहे थी। आरोपी को इस साल मार्च में हिरासत लिया गया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि जमानत के लिए दाखिल उसका आवेदन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष लंबित है, जिस पर शीघ्र सुनवाई की जाए।
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पीठ ने हाई कोर्ट को कहा है कि याचिकाकर्ता की जमानत याचिका पर यथासंभव जल्दी विचार किया जाए। पीठ ने कहा कि सत्र अदालत ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद उसने सात जुलाई को जमानत के लिए हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि मामले को अदालत में कई बार सूचीबद्ध किया गया, लेकिन इस पर सुनवाई नहीं हो सकी।
सुप्रीम ने पिछले हफ्ते अपने आदेश में कहा कि हम इस समय मामले में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं, लेकिन व्यक्ति की स्वतंत्रता अहम है और हम उम्मीद करते हैं कि अगर सीआरपीसी की धार 438/439 के तहत आवेदन दाखिल किया गया है, चाहे गिरफ्तार से पहले या गिरफ्तारी के बाद में, तो इस पर जितना जल्दी संभव हो, सुनवाई होनी चाहिए।
आपराधिक दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) की धारा 438 का इस्तेमाल गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को जमानत देने के लिए किया जाता है जबकि सीआरपीसी की धारा 439 जमानत के संबंध में हाई कोर्ट या सत्र अदालत की विशेष शक्तियों से संबंधित है। याचिकाकर्ता को इस साल 30 मार्च को गैर इरादतन हत्या के तहत दर्ज मामले में हिरासत में लिया गया था।