New Delhi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने तिहरे हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए एक दोषी को महज पांच साल बाद ही रिहा करने के यूपी की पूर्ववर्ती सपा सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह से आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ तोड़-मरोड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सपा के एक पदाधिकारी की सिफारिश पर दोषी को रिहा किया गया है।
जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने दोषी जैनी सिंह की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि उम्रकैद के दोषियों को सिर्फ पांच वर्ष की सजा के बाद रिहा किया जाएगा तो आपराधिक न्याय शास्त्र का क्या होगा? इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर किसी की राजनीतिक पहुंच है तो उसे समय से पूर्व रिहा किया जा सकता है।
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गत 26 फरवरी को हाई कोर्ट ने जैनी को समर्पण करने का आदेश देते हुए सजा काटने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने बुलंदशहर में हुए तिहरे हत्याकांड में मारे गए व्यक्तियों में से एक कर्ण सिंह की पत्नी प्रकाशवती सिंह की याचिका पर आदेश पारित किया था। निचली अदालत ने 2011 में जैनी समेत छह लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
जैनी को रिहा करने का निर्णय योगी आदित्यनाथ के प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से ठीक चार दिन पहले, 15 मार्च 2017 को लिया गया था। जब दोषी को रिहा किया गया उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार थी।
तत्कालीन जेल विभाग के मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया ने समाजवादी सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष कर्नल सत्यवीर यादव के पत्र के आधार पर जैनी को उनकी वृद्धावस्था और अस्वस्थता के कारण रिहा करने की सिफारिश की गई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने उस सिफारिश को मंजूरी दी थी।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-433 ए में कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति को अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, जिसके लिए कानून के तहत फांसी की सजा का भी प्रावधान हो, तो ऐसे व्यक्ति की रिहाई पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता जब तक उसने जेल से कम से कम 14 साल की कैद काट न ली हो।