Masanjor Dam controversy: हाईकोर्ट ने कहा- सरकार नींद से जागे और अपने अधिकार की लड़ाई स्वयं लड़े

Ranchi: Masanjor Dam controversy मसानजोर डैम विवाद के मामले में सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नींद से जागने और अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने को कहा है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने यह मौखिक कहा।

सांसद की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि मसानजोर डैम से पानी नहीं मिलना और समझौते का लाभ नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। बंगाल और झारखंड सरकार में जो समझौता हुआ है उसका लाभ राज्य को नहीं मिल रहा है। कहा गया कि डैम झारखंड में है। कैचमेंट एरिया और डूब क्षेत्र भी इसी राज्य में है।

लेकिन सभी सुविधा बंगाल को मिलती है। डैम पर पूरा नियंत्रण भी बंगाल सका है। यह उचित नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह दो राज्यों के बीच जल विवाद का मामला है। यह मामला हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है, इसलिए कोई प्रभावी आदेश पारित नहीं किया जा सकता।

ऐसे में राज्य सरकार स्वयं ही अपने अधिकार की लड़ाई लड़े। अदालत ने कहा कि मसानजोर डैम एक बढ़िया पर्यटन स्थल है। राज्य सरकार वहां पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराए, ताकि लोग वहां घूमने जा सके। ऐसा करने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और वे भटके नहीं।

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कोडरमा से रजौली तक सड़क को बनाए अवागमन लायक

झारखंड हाईकोर्ट ने रांची- पटना एनएच के कोडरमा से रजौली तक जर्जर सड़क को अविलंब दुरूस्त करने का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस एसएसन प्रसाद की अदालत ने इस मामले में बिहार सरकार से भी जवाब मांगा है। बिहार सरकार से पूछा है कि वाइल्ड लाइफ बोर्ड का पुनर्गठन कब तक कर लिया जाएगा।

सुनवाई के दौरान अदालत ने झारखंड सरकार से पूछा कि सड़क निर्माण में अब तक कितने पेड़ों को काटा गया है, कितनों को ट्रांसप्लांट किया गया है। अदालत ने दोनों सरकारों से शपत पत्र के माध्यम से जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा है। इस मामले में अब 21 अक्टूबर को सुनवाई होगी।

सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि वाइल्ड लाइफ बोर्ड के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है और जल्द ही इसका गठन कर दिया जाएगा। बिहार सरकार की ओर से इसकी जानकारी देने के लिए समय देने का आग्रह किया गया, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया।

सुनवाई के दौरान अदालत ने एनएचएआई से कहा कि कोडरमा से रजौली तक की सड़क अभी भी जर्जर है। यह सड़क चलने लायक नहीं है। बार- बार निर्देश दिए जाने के बाद भी एनएचएआई सिर्फ गड्ढा भर रहा है। भारी वाहनों के चलने से रास्ता टूट जा रहा है।

इस पर एनएचएआई की ओर से बताया गया कि बरसात में अलकतरा का काम नहीं किया जाता है। बरसात समाप्त होते ही पूरी सड़क को बेहतर तरीके से बना दी जाएगी।
इस दौरान अदालत ने कहा कि बिहार में एनएच के चौड़ीकरण और नयी सड़क बनाने के दौरान पेड़ों को काटा नहीं जा रहा।

उन्हें ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। झारखंड में ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा है। इस पर अदालत को बताया गया कि झारखंड में भी पेड़ ट्रांसप्लांट किए गए हैं। अदालत इससे संतुष्ट नहीं हुआ और सरकार को शपथपत्र दाखिल कर यह बताने को कहा कि राज्य में सड़क निर्माण के लिए अब तक कितने पेड़ काटे गए हैं और कितने ट्रांसप्लांट किए गए हैं। किन-किन इलाकों में पेड़ ट्रांसप्लांट किए गए हैं और इसमें कितने पेड़ जीवित है।

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