झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की खंडपीठ में साइबर फ्रॉड के शिकार लोगों के पैसे की वापसी को लेकर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि साइबर फ्रॉड के मामले में शिकायत के बाद पुलिस को तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए ताकि उनके पैसे वापस होने में सहूलियत हो।
अदालत ने इस मामले में राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) को प्रतिवादी बनाते हुए जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी। इस दौरान केंद्र सरकार के साइबर क्राइम को-आर्डिनेटर सहित सीआइडी डीजी अनुराग गुप्ता, कार्तिक एस कोर्ट में उपस्थित हुए थे।
अगली सुनवाई के दौरान बैंक के अधिकारियों सहित सभी को उपस्थित रहने को कहा गया है। मामले में न्याय मित्र सौम्या पांडेय की ओर से इस संबंध में कुछ सुझाव दिया गया। अदालत ने सभी पक्षों को इस पर विचार करते हुए जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
साइबर फ्रॉड के सभी मामलों में प्राथमिकी संभव नहीं- सरकार
इससे पहले सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि साइबर फ्रॉड के पांच हजार से ज्यादा मामले आते हैं। ऐसे में सभी में प्राथमिकी दर्ज करना संभ नहीं है। अदालत ने कहा कि नियमानुसार साइबर फ्रॉड के प्रभावितों को उनके पैसे वापस दिलाने के लिए प्राथमिकी दर्ज होना जरूरी है।
अदालत ने कहा कि एक ऐसा प्रक्रिया बनानी चाहिए जिससे पैसा बैंक से क्रेडिट होने के बाद लोगों को मोबाइल पर मैसेज आए कि उनके पैसे किसके खाते में गए हैं, इससे साइबर क्राइम के आरोपितों का अकाउंट को सीज करने में सहायता मिलेगी।
ठगी के शिकार पीड़ितों के लिए बने कार्पस फंड
इस दौरान अदालत ने सुझाव दिया कि साइबर ठगी के शिकार लोगों के पैसे वापसी के लिए कार्पस फंड बनाया जाना चाहिए। साइबर फ्राड करने वालों के बैंक अकाउंट सीज करने के लिए एक मैकेनिज्म तैयार किया जाना चाहिए।
इसके लिए बैंकों में कुछ कर्मचारियों को लगाया जाना चाहिए। पूर्व में राज्य सरकार ने बताया था कि साइबरफ्राड के शिकार लोगों के पैसे वापस करने को लेकर गुजरात में माडल तैयार किया है। ऐसा ही झारखंड में तैयार किया जाना है।
बता दें कि इस संबंध में साइबर फ्राड रोकथाम एवं इसके शिकार लोगों की पैसा वापसी को लेकर झारखंड हाई कोर्ट के एक पत्रलिखा गया था, जिस पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।
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