Ranchi: Promotion झारखंड हाईकोर्ट में डिप्टी कलेक्टर से एसडीओ पद पर प्रोन्नति दिए जाने की अनुशंसा के बाद अधिसूचना जारी नहीं करने के मामले में सभी पक्षों की ओर से बहस पूरी कर ली गई। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
अधिसूचना जारी नहीं किए जाने के खिलाफ राजकिशोर प्रसाद सहित अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका की गई है। जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत में सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता सह वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व चंचल जैन ने अदालत को बताया कि 24 दिसंबर 2020 को राज्य सरकार की ओर से सभी प्रोन्नति पर रोक लगा दी गई।
उसके बाद भी कई विभागों में प्रोन्नति की अधिसूचना जारी की गई। लेकिन इस मामले में सरकार वादियों के साथ भेदभाव कर रही है। उक्त आदेश को सरकारी आदेश नहीं माना जा सकता है। न तो यह राज्यपाल का आदेश और न ही प्रोन्नति पर रोक का कोई कारण बताया गया। यह आदेश एक विभाग के प्रधान सचिव की ओर से जारी किया गया है। इस आदेश पर प्रोन्नति का मामला लंबित नहीं रखा जा सकता है।
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सरकार की ओर से तीन सदस्यीय समिति का गठन मई 2021 में किया गया है तो उसके बाद की कार्रवाई के आधार पर 24 दिसंबर 2020 के आदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता है। वादियों को डीपीसी (विभागीय प्रोन्नति कमेटी) के समक्ष योग्य पाए गए हैं, इसलिए यह उनके मौलिक अधिकार का मामला बनता है। जिससे उन्हें वंचित नहीं रखा जा सकता है।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार वर्तमान विधानसभा सत्र में विधेयक लाने जा रही है, जिसमें प्रोन्नति में आरक्षण का मामला स्पष्ट हो जाएगा। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि किस प्रकार तीन सदस्यीय समिति अथवा उनकी रिपोर्ट वर्तमान मामले से जोड़ा जा सकता है।
जब महाधिवक्ता ने पूर्व में स्वयं कोर्ट को आश्वस्त किया था कि सरकार प्रोन्नति पर लगी रोक के आदेश को वापस लेगी। इस मामले में जब कोर्ट का स्पष्ट आदेश है तो ऐसी स्थिति में सरकार के पक्ष को सही नहीं माना जा सकता है। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुरिक्षत रख लिया है।