सुप्रीम कोर्ट से नवजात की हत्या की दोषी महिला बरी! कहा- सबूत नहीं कि अपने बच्चे की हत्या की

सुप्रीम कोर्ट ने नवजात की हत्या की दोषी एक महिला को बरी कर दिया है। शीर्ष अदालत ने निचली अदालत और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसलों को खारिज करते हुए कहा कि इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि आरोपी ने अपने नवजात शिशु की हत्या की थी और बच्चा उसका था।

इसके अलावा शीर्ष अदालत को लगता है कि आरोपी की निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। आरोप है कि गांव के एक युवक से संबंध के चलते वह गर्भवती हो गई। लेकिन लोक-लाज के डर से उसने नवजात की हत्या कर दी। आरोप था कि उसने अपने बच्चे को दलदल में फेंक दिया।

इससे संबंधित घटना में 13 वर्ष पूर्व मुकदमा दर्ज किया गया था। 2010 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महिला को दोषी पाया। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। महिला ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने किया बरी

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस संजय करोल की बेंच में हुई। खंडपीठ की टिप्पणियों में कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर मामले का फैसला सुनाया गया।

गवाही देने वाले आठ गवाहों में से किसी के भी महिला के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। इसलिए वस्तुनिष्ठ गवाही की संभावना बनी रहती है। कोर्ट ने कहा कि महिला के जयमंगल सिंह से खराब संबंध थे, जिनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी।

निचली अदालत और हाई कोर्ट में दलील दी गई कि 14 सितंबर 2004 को तालाब में नवजात का शव मिला था। जानकारी के मुताबिक, दो-तीन दिन पहले ही आरोपी ने एक बच्चे को जन्म दिया था।

दूसरे मामले में महिला को फंसाया गया

उधर, महिला के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि जिस पड़ोसी के साथ उनकी मुवक्किल का अफेयर था, वह बच्चा नहीं चाहता था। जब उसे पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने उसे जबरदस्ती मुवक्किल को कोई दवा खिला दी।

नतीजा यह हुआ कि उसका गर्भपात हो गया। इसलिए जानबूझकर महिला को दूसरे शव की बरामदगी के मामले में फंसाया गया। और इसके लिए वो इतने सालों से सजा काट रही है।

सभी पक्षों की दलीलें सुनने और साक्ष्य लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट और निचली अदालतों के फैसलों की आलोचना की। शीर्ष अदालत ने कहा, महिला को उचित और मजबूत सबूत के बिना दोषी ठहराया गया और उनकी निजता के अधिकार का भी उल्लंघन किया गया है।

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