Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, सीवर सफाई के दौरान मौत पर मजदूर को दें 30 लाख मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौत के मामले में सख्त निर्देश जारी किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौत के मामले में सरकारी अथॉरिटी को मुआवजे का भुगतान करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जिन भी मजदूर की सीवर सफाई के दौरान मौत होती है, उसके परिजनों को 30 लाख रुपये मुआवजा राशि का भुगतान किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीवर सफाई के दौरान यदि कोई मजदूर परमानेंट तौर पर दिव्यांगता का शिकार हो जाता है तो उसे मुआवजे के तौर पर 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को इस मामले में निर्देश दिया है कि सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की परंपरा पूरी तरह से खत्म हो।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि अगर कोई मजदूर सफाई काम के कारण दिव्यांग हो जाता है तो उसे मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाए।

शीर्ष अदालत ने अपने एक बेहद अहम आदेश में कहा कि सरकारी अथॉरिटी को यह तय करना होगा कि इस तरह की घटना न हो और इस तरह के मामले की निगरानी से हाई कोर्ट को नहीं रोका जा सकता है।

13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह देश भर के राज्यों के सेक्रेटरी के साथ मीटिंग करे और हाथों से मैले की सफाई रोकने को लेकर तमाम पहलुओं पर बातचीत करे।

मैन्युअल स्केवेंजर्स (हाथ से मैले की सफाई) को रोकने के लिए कोर्ट ने जल्द से जल्द कदम उठाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हाथ से मैले की सफाई रोकने के लिए अर्जी दाखिल की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में केंद्र सरकार से कहा था कि वह बताए कि इस मामले में बने 2013 के कानून को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र बताए कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के तहत जारी गाइडलाइंस को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में क्या था?

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक ऐतिहासिक फैसले में हाथ से (मैन्युल तरीके से) कचरे और गंदगी की सफाई रोकने के लिए तमाम निर्देश जारी किए थे। साथ ही कहा था कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को न लगाया जाए। बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए। कानून का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सथासिवम की बेंच ने देश भर के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 2013 के उस कानून को लागू करे जिसमें हाथ के कचरा उठाने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रावधान किया गया था।

सफाई कर्मचारी आंदोलन की ओर से इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी और कहा गया था कि हाथ से कचरा हटाने और खतरनाक सीवर लाइन में बिना सेफ्टी गार्ड के मजदूरों के उतरने आदि को लेकर कानून का पालन करने का निर्देश दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग रहने के दौरान ही केंद्र सरकार ने एक्ट (प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैन्युअल स्कैविंजर एंड देयर रिहेबिलेशन एक्ट 2013) बनाया था। याचिका में कहा गया था कि उनके जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार की रक्षा की जाए।

चीफ जस्टिस सदाशिवम ने जारी किए निर्देश

  • तमाम राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एक्ट के लागू होने के एक साल के बाद कोई भी खतरनाक सीवर लाइन में काम करने के लिए मजदूर को नहीं लगाएगा।
  • जो लोग भी हाथ से कचरे और गंदगी की सफाई करते हैं उनकी पहचान सुनिश्चित की जाए। उनकी लिस्ट बनाई जाए। उनके बच्चों को स्कॉलरशिप की व्यवस्था की जाए।
  • ऐसे मजदूरों को प्लाट और घर बनाने लिए सहयोग किया जाए और परिवार के एक सदस्य को ट्रेनिंग दिया जाए ताकि वह अपना गुजारा चला सकें। डीएम को इस बात का निर्देश दिया गया था कि हाथ से काम करने वाले ऐसे सफाई मजदूरों के पुनर्वास को सुनिश्चित किया जाए।
  • डीएम की ड्यूटी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि कोई भी हाथ से गंदगी की सफाई में मजदूर न लगाए जाएं। अगर कोई भी मजदूर बिना सेफ्टी के इंतजाम के सीवर लाइन में जाते हैं तो इसे क्राइम माना जाए।
  • अगर कोई अथॉरिटी फिर भी कानून का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है और अलग-अलग मामले में एक साल से 5 साल तक सजा का प्रावधान है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2014 को व्यवस्था दी थी कि सीवर लाइन में बिना सेफ्टी के मजदूर को ले जाना क्राइम होगा साथ ही प्रत्येक मौत के मामले में 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 2013 के एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस को देश भर के प्रत्येक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लागू करने के लिए कहा गया था
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