जन प्रतिनिधियों के उद्दंड व्यवहार का सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान, कहा- इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
Ranchi: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि उसने संसद (Parliament) और विधानसभाओं में जन प्रतिनिधियों (Public Representatives) के उद्दंड व्यवहार का कड़ा संज्ञान लिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और इस तरह के आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत ने 2015 में केरल विधानसभा में हुए हंगामे के सिलसिले में दर्ज एक आपराधिक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। यह घटना राज्य में पिछली कांग्रेस नीत यूडीएफ शासन के दौरान हुई थी। न्यायालय ने कहा कि यह अवश्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सदन में शिष्टाचार बना रहे।
इसे भी पढ़ेंः बड़ा फैसलाः पटना हाईकोर्ट ने कहा-परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी नौकरी में है तो दूसरे को नहीं मिलेगी अनुकंपा पर नौकरी
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने केरल विधानसभा की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया हमें इस तरह के व्यवहार का कड़ा संज्ञान लेना होगा। इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है। पीठ ने कहा कि हमें अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि कुछ शिष्टाचार बना रहे। इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। संसद में भी यह हो रहा है और इसके खिलाफ सख्ती बरतनी होगी।
इस मामले में केरल सरकार ने एक याचिका के जरिये हाई कोर्ट के 12 मार्च के आदेश को चुनौती दी है। इसमें राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी गई थी, जो राज्य विधानसभा के अंदर 2015 में हुए हंगामे से जुड़े एक आपराधिक मामले को निरस्त करने के लिए थी।
केरल विधानसभा में 13 मार्च, 2015 को अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला था। उस वक्त विपक्ष में मौजूद एलडीएफ विधायकों ने तत्कालीन वित्त मंत्री केएम मणि को बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी, जो बार रिश्वत कांड में आरोपों का सामना कर रहे थे।