Ranchi: Starvation Death झारखंड हाईकोर्ट ने भूख से कथित मौत मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागज पर हैं जबकि उन्हें धरातल पर उतरना चाहिए। ऐसा नहीं होने की वजह से नक्सलवाद में बढोत्तरी होती है।
चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने झारखंड लीगल सर्विस प्राधिकार (झालसा) की रिपोर्ट पढ़ने के बाद कहा कि एक महिला पेड़ पर दिन गुजार रही है, यह कितनी शर्म की बात है। हम उन्हें मानव नहीं जंगली की तरह ट्रीट कर रहे हैं। जबकि उनका ही जंगल है। जहां से खनिज निकाला जा रहा है।
खनिज निकालने के बाद हम उन्हें कुछ भी नहीं दे रहे हैं। उनके उनके हाल पर छोड़ दे रहे हैं। पीडीएस की दुकान इतनी दूरी है। स्कूल में पीने का शुद्ध पानी नहीं है। गांव में चिकित्सा की सुविधा नहीं है। आठ किलोमीटर पर स्कूल है। बच्चों के बदन पर कपड़े नहीं है। ऐसा लग रहा है हम आदिम युग में जी रहे हैं।
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अदालत ने कहा कि रिपोर्ट में यह कहा है कि गांव के लोगों का जंगल से सूखी लकड़ी बाजार में बेचकर जीवनयापन करना पड़ रहा है। जबकि केंद्र की कई योजनाएं जिन्हें पूरा कराना सरकार का काम है। इसके जिम्मेवार सीओ और वीडिओ क्या कर रहे हैं।
अदालत ने कहा कि सरकार को सिर्फ आंख मूंद लेने से कुछ नहीं होगा। आप रटते रहें कि हम वेलफेर स्टेट हैं। जबकि हकीकत यहीं है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागज पर चल रही है। धरातल पर कोई काम नहीं दिख रहा है। सरकार को इस पर सोचना होगा।
इसके बाद अदालत ने समाजिक कल्याण विभाग के सचिव को अगली सुनवाई के दौरान अदालत में ऑनलाइन हाजिर होने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने इस मामले में झालसा की रिपोर्ट पर विभाग को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है।