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हाईकोर्ट की JPSC पर सख्त टिप्पणीः नियुक्ति में देरी पर कहा- संवैधानिक संस्था नहीं होती, तो अभी करा देते बंद

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Ranchi: JPSC News झारखंड हाईकोर्ट ने रांची एफएसएल लैब में रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए अधियाचना भेजने जाने के बाद भी जेपीएससी की ओर से विज्ञापन जारी नहीं करने पर कड़ी नराजगी जताई। अदालत ने कहा कि जेपीएससी कुछ काम नहीं कर रही है। अगर यह संवैधानिक संस्था नहीं होती, तो कोर्ट इसे आज ही बंद करने क आदेश देती। अदालत ने धनबाद जज उत्तम आनंद मामले की सुनवाई के दौरान उक्त टिप्पणी की है।

चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने कहा कि जब सरकार ने एक साल पहले ही एफएसएल के रिक्त पदों पर नियुक्ति करने के लिए जेपीएससी को अधियाचना भेज दी है, तो अभी तक जेपीएससी इसको लेकर क्या कर रही है। इसके बाद अदालत ने जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल को तत्काल कोर्ट में जुड़ने का आदेश दिया।

कुछ देर बाद जेपीएससी के अधिवक्ता अदालत में उपस्थित हुए और कोर्ट से समय की मांग की। इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि जेपीएससी की ओर से सिर्फ समय की मांग की जाती है। क्या इस मामले में जेपीएसससी चेयरमैन को ही कोर्ट में बुला लिया जाए। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि वह इस मामले में तत्काल अपडेट लेकर कोर्ट को अवगत कराते हैं।

इसे भी पढ़ेंः जज उत्तम आनंद हत्याकांडः हाईकोर्ट ने जांच रिपोर्ट देखकर कहा- नशे में नहीं, बल्कि जानबूझ कर ऑटो चालक ने जज को मारी टक्कर

अदालत ने कहा कि डेढ़ साल पहले जब सरकार ने उन्हें नियुक्ति करने के लिए विज्ञापन जारी करने को कहा था अभी तक क्यों नहीं किया गया। राज्य का सबसे बड़ी एफएसएल लैब है। जहां पर 40 प्रतिशत से कम मैनपॉवर पर काम किया जा रहा है। यह शर्म की बात है। अगर इसमें किसी प्रकार की कोई समस्या है, तो उसे तत्काल दूर करते हुए विज्ञापन जारी करना चाहिए।

इस दौरान एफएसएल निदेशक की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया। इसमें वर्तमान में लैब में स्वीकृत किए गए नए पदों को जानकारी दी गई है। जबकि अदालत ने पूरे लैब में कितने पद हैं, कितने लोग नियुक्त है और रिक्त पदों की जानकारी मांगी थी। अदालत ने निदेशक के शपथ पत्र से असंतुष्टि जताई और दोबारा पूरी जानकारी के साथ निदेशक और गृह सचिव को शपथ पत्र दाखिल करने को कहा है।

आउटसोर्सिंग करने पर कोर्ट नाराज
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर शपथ पत्र दाखिल कर कहा गया कि लैब में कुछ पदों को आउट सोर्स किया जा रहा है। इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि लैब में काफी गोपनीय मामलों की जांच होती है। ऐसे में आउट सोर्स पर काम करने वाले कुछ लीक होने पर कैसे जिम्मेदारी तय होगी। मान लिया जाए कि अगर सफाईकर्मी ही आउट सोर्स होता है।

उसकी पहुंच तो लैब के हर कोने में होगी। ऐसे में गोपनीयता भंग होने की संभावना है। अदालत ने यह भी कहा कि अगर पद सृजित किए गए हैं और वह रिक्त हैं, तो उस पर नियुक्ति की जानी चाहिए न कि उसे आउट सोर्स से भरा जाए। अदालत ने यहां तक कहा कि निदेशक को पूरी जानकारी नहीं देने पर हर्जाना लगाया जा सकता है। अदालत ने इस निदेशक और गृह सचिव से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

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Devesh Ananad

देवेश आनंद को पत्रकारिता जगत का 15 सालों का अनुभव है। इन्होंने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम किया है। अब वह इस वेबसाइट से जुड़े हैं।

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