सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा जारी एक आदेश पर स्वतः संज्ञान लिया है। दरअसल, एक मामले में उच्च न्यायालय ने अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी, जिसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी स्थगन आदेश की आलोचना करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की। न्यायमूर्ति ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट खुद को अधिक “सर्वोच्च” मानता है। यह वास्तव में उच्च न्यायालयों को संवैधानिक रूप से कम “उच्च” मानता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत और हृषिकेश रॉय की पांच न्यायाधीशों वाली पीठ बुधवार को मामले की सुनवाई करेगी। इस पीठ में शीर्ष अदालत के पहले पांच न्यायाधीश शामिल हैं।
इससे पहले पंजाब हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सहरावत ने कहा कि सु्प्रीम कोर्ट अपने आप को ज्यादा सर्वोच्च समझता है जबकि वह उच्च न्यायालयों को जो शक्ति संविधान द्वारा दी गई है उसकी तुलना में भी कम उच्च समझता है।
न्यायमूर्ति सहरावत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही पर रोक अवमानना शुरू करने वाले आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते समय नहीं लगाई, बल्कि उस आदेश के खिलाफ अपील पर लगाई जिसके कारण अवमानना की कार्यवाही हुई।
जस्टिस सहरावत ने इस बात को जोर देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने स्वयं इस बात को कई बार स्पष्ट किया है कि उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं हैं। “उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के बीच का संबंध वैसा नहीं है जैसा कि अपने अधिकार क्षेत्र में एक सिविल जज (जूनियर डिवीजन) और उच्च न्यायालय के बीच होता है।
जस्टिस सहरावत की इन टिप्पणियों के बाद सोमवार की शाम को पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने हाईकोर्ट के रोस्टर में संशोधन करते हुए अदालत की अवमानना के सभी मामले जस्टिस सहरावत से जस्टिस हरकेश मनुजा को ट्रांसफर कर दिया। अब इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट बुधवार 7 जुलाई को सुनवाई करेगा।