सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज में लापरवाही से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मंगलवार को फिर मौखिक कहा कि रिम्स में चिकित्सा उपकरण, चिकित्सा सुविधा और आधारभूत संरचना उपलब्ध करायी जाए अन्यथा इसे बंद कर देना ही बेहतर होगा। इसी अदालत ने 25 दिन पहले भी इसी तरह की टिप्पणी की थी। जस्टिस आर मुखोपाध्याय और जस्टिस पीके श्रीवास्तव की अदालत ने कहा कि रिम्स में मेडिकल सुविधाओं की कमी, मरीज के देखभाल में लापरवाही अक्सर देखने को मिलती है। रिम्स की व्यवस्था सही नहीं रहने पर लोग निजी अस्पतालों की शरण में जा रहे हैं।
रांची शहर में ही कई निजी अस्पताल बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं। बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे इन निजी अस्पतालों की संख्या झारखंड में दिनों दिन बढ़ती जा रही है। प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में हेल्थ केयर की जगह वेल्थ केयर पर ध्यान रखा जाता है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल करने का आग्रह किया जाने पर कोर्ट ने मौखिक कहा कि शपथ पत्र में राज्य सरकार की ओर से ऐसी बातें कही जाती है जिससे लगता है कि अस्पताल स्वीटजरलैंड में है।
अदालत ने सरकार से पिछले पांच वर्षों में झारखंड में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं लेने वाले नर्सिंग होम एवं अस्पतालों पर कार्रवाई और इस एक्ट का अनुपालन नहीं करने वालो पर लगे जुर्माना के संबंध में राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को बताने को कहा है कि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का अनुपालन नहीं करने वाले अस्पताल एवं नर्सिंग होम पर कितना जुर्माना लगाया गया है। मामले की अगली सुनवाई 8 अगस्त को होगी। इस दिन न्याय मित्र की ओर से दिए गए सुझावों पर भी सुनवाई की जाएगी।