Jharkhand High Court News: जनप्रतिनिधियों व सरकारी कर्मियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की अनिवार्यता को लेकर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। झारखंड में 7000 से अधिक एकल विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति और 4000 से अधिक जर्जर सरकारी स्कूलों को ध्वस्त कर नए स्कूलों के निर्माण की मांग गई है। इसको लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट पंकज कुमार यादव ने जनहित याचिका दाखिल की है
याचिका में कहा गया है कि झारखंड में सरकारी स्कूलों की खराब व्यवस्था को ठीक करने के लिए सरकारी कर्मी व जनप्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए। झारखंड में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था देश के बाकी राज्यों की तुलना में सबसे खराब है।
झारखंड की प्राथमिक विद्यालय में 50 प्रतिशत सीट शिक्षकों के रिक्त हैं। माध्यमिक में 42 प्रतिशत तथा हाई स्कूलों में शिक्षकों के 55% से अधिक पद रिक्त हैं। इस परिस्थिति में छात्रों को शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। सरकारी स्कूलों में 15 लाख से अधिक बच्चे प्रतिदिन अनुपस्थित रहते हैं।
खराब शिक्षा के कारण अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं। डेढ़ लाख विद्यार्थियों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई है। याचिका में स्कूलों में शौचालय, प्लेग्राउंड तथा साफ सफाई की कमी है। किसी भी स्कूल में फायर सेफ्टी इक्विपमेंट नहीं है। बरसात में वज्रपात से बचने के लिए तड़ित चालक की व्यवस्था किसी स्कूल में नहीं है।
सरकारी स्कूलों की लर्निंग आउटकम बहुत ही खराब
स्कूलों में पांचवी तक के विद्यार्थी अंग्रेजी में रीडिंग तक नहीं पढ़ पाते हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं के विद्यार्थी अंग्रेजी ,मैथ और विज्ञान के शिक्षक से पढ़े बगैर ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर जाते हैं। याचिका में बताया गया है कि 7000 से अधिक ऐसे स्कूल हैं जो सिर्फ एक-एक शिक्षक के द्वारा संचालित हो रहे हैं।
कई विद्यालय ऐसे हैं जहां एक से लेकर पांचवी तक के विद्यार्थी एक ही कमरे में एक ही शिक्षक द्वारा एक ही ब्लैक बोर्ड पर पढ़ते हैं। कई स्कूलों में सीनियर छात्र ही जूनियर बच्चों को पढ़ाते हैं । याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस मामले में सरकार को पत्र लिखकर ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की गई थी लेकिन सरकार ने इस पर संज्ञान नहीं लिया।
स्कूलों की कमी के कारण कई जगह विद्यार्थी टेंट के नीचे या खुली आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले सबसे अधिक बच्चे एसटी -एससी और ओबीसी वर्ग के हैं। सामान्य वर्ग के मात्र 2 दो बच्चे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। याचिकाकर्ता ने सभी तथ्यों से जुड़े कागजात, जांच रिपोर्ट और विधानसभा में सरकार की जवाब की प्रति हाई कोर्ट को उपलब्ध कराई है।
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