Murder Case: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चंद की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सिर्फ हत्या में इस्तेमाल हथियार की बरामदगी के आधार पर किसी को दोषी करार नहीं दिया जा सकता। दोष सिद्ध करने के लिए अन्य साक्ष्यों की भी जरुरत है।
अगर हत्या का हथियार बरामद भी हो जाये और उस पर खून के धब्बे भी हों, तब भी इससे आरोपी का अपराध साबित नहीं होता। यह अकेली परिस्थिति किसी भी तरह से अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का आधार नहीं बन सकती। हथियार बरामदगी को छोड़कर अन्य परिस्थितियों पर भी गौर किया जाना चाहिए और अपीलकर्ता को दोषी ठहराने के लिए कुछ कड़ी होनी चाहिए।
अदालत ने प्रार्थी को किया बरी
इस निर्देश के साथ खंडपीठ ने प्रार्थी संजय कुजूर को बरी कर दिया। सिमडेगा की निचली अदालत हत्या के मामले में दोषी करार दिया था और सजा सुनायी थी। इसके खिलाफ संजय कुजूर ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि मृतक मुकेश कुजूर की पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के मुताबिक, जब वह खेत पर काम करने गयी थी, तभी उसकी भाभी ने बताया कि उसके पति पर उसके भाई ने कुल्हाड़ी से हमला कर दिया है।
हमले के बाद उसका पति बेहोशी की हालत में आंगन में पड़ा मिला। वह तुरंत घर पहुंची और घायल पति को अस्पताल ले गयी। शुरुआत में, भारतीय दंड संहिता की धारा 326/307 (हत्या का प्रयास) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी थी। बाद में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) को जोड़ा गया।
प्रार्थी की ओर से दलील दी गयी थी कि घटना के कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। केवल हथियार की बरामदगी भले ही अपीलकर्ता के कबूलनामे के माध्यम से हत्या के हथियार के रूप में पहचान की गई हो, लेकिन पुष्टि करने वाले साक्ष्य के बिना यह दोषसिद्धि के लिए अपर्याप्त है जो इस मामले में नहीं है।