Gwalior: हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालय के चार शिक्षकों की याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक विद्यालयों में मिलने वाली शिक्षा भारत की नींव है। इसलिए इस शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है।
मध्य प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों में जो शिक्षक भर्ती हो रहे हैं, उनकी योग्यता कम है। इसमें अक्षम लोग भर्ती हो रहे हैं। इसका नुकसान बच्चों को उठाना पड़ रहा है। कोर्ट ने कहा कि हम आशा करते हैं कि इस भर्ती स्टैंडर्ड में सुधार होना चाहिए, जिससे अच्छे लोग प्राथमिक विद्यालयों की ओर आकर्षित हों। उसके लिए वेतन व भत्ते अच्छे दिए जाएं।
कोर्ट ने आदेश की कापी विधि व सामान्य प्रशासन विभाग को भेजने का आदेश दिया है। सीमा शाक्य, प्रशांत डंडौतिया, गनपत आदिवासी व सुनील कुमार प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत हैं। उन्होंने डीएलएड करने के लिए शासकीय कालेज में प्रवेश लिया था। उन्हें अपना डिप्लोमा कोर्स तीन साल में पूरा करना था।
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लेकिन तीन साल में ये पास नहीं हो सके। उन्होंने अपना डिप्लोमा पूरा करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। उनकी ओर से तर्क दिया गया कि उनके आंतरिक परीक्षा के अंक दर्ज नहीं किए गए, इस वजह से फेल हो गए थे। उन्हें एक मौका और दिया जाए।
यदि कोर्ट का लिटिगेशन नहीं होता तो उन्हें परीक्षा देने के लिए एक मौका मिलता। कोर्ट ने पक्ष सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी है। काेर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए में प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में रखा गया है। जिन परीक्षाओं को पास करके शिक्षक बन रहे हैं, उनके पासिंग मार्क्स काफी कम हैं। उनके पासिंग मार्क्स अच्छे होने चाहिए।