Ranchi: Judge Uttam Anand murder case: हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में धनबाद के जज उत्तम आनंद हत्याकांड मामले में सुनवाई हुई। अदालत ने एक बार फिर से मोबाइल लूटने के लिए जज की हत्या किए जाने की सीबीआई की कहानी को खारिज कर दिया। अदालत ने सीबीआई की प्रगति रिपोर्ट देख कहा कि सीबीआई इस मामले की तह तक नहीं पहुंच पाई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस मामले से अब थक गई है और मामले से अपना पीछा छुड़ाने के लिए नई कहानी गढ़ रही है। अदालत ने दोनों आरोपियों की नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को पढ़कर सुनाया। इस रिपोर्ट में राहुल ने कहा कि लखन आटो तेज चला रहा था। मैं बायीं ओर बैठा था। जज धीरे-धीरे भाग रहे थे। उनके हाथ में रूमाल था। लखन ने जज को टक्कर मार दी और जज गिर पड़े।
लखन ने जानबूझ कर ही टक्कर मारी थी। इस रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया गया है कि किसी ने उन्हें जज को मारने के लिए कार्य सौंपा था। सीबीआई ने इस रिपोर्ट से सहमति भी जताई। इसके बाद अदालत ने कहा कि इस रिपोर्ट से यही प्रतीत हो रहा है कि दोनों जज को पहले से जानते थे और उनके पास मोबाइल नहीं था। इसके लिए उन्होंने जज की रेकी की थी।
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ऐसे में सीबीआई की यह थ्योरी नहीं चलेगी कि जज की हत्या मोबाइल के लिए की गई है। इससे पहले सीबीआई की ओर से अदालत में एक मैप पेश किया गया, जिसमें जज के मॉर्निंग वाक का डिटेल था। सीबीआई की ओर से बताया गया कि जिस स्थान पर जज मॉर्निंग वॉक कर रहे थे, वह पूरा क्षेत्र सीसीटीवी कैमरे की जद में था।
घटना के समय उस लोकेशन में जितने भी मोबाइल फोन सक्रिय थे सभी की जांच की गई लेकिन किसी की भी आरोपियों के साथ बात होने का सबूत नहीं मिला। जज को टक्कर मारने के पहले रेकी भी नहीं हुई थी। जहां से आटो चला था वह बीच में किसी के लिए नहीं रुका और न ही किसी ने उनसे संपर्क किया। जज रोजाना मॉर्निंग वाक पर नहीं जाते थे।
इसके बाद अदालत ने कहा कि जिस तरह से घटना को अंजाम दिया गया उससे प्रतीत होता है कि जज की रेकी भी हुई होगी। सीबीआई इसका पता नहीं लगा पा रही है। सीबीआइ अब जो कही है रही उससे प्रतीत हो रहा है कि वहआरोपितों को क्लीनचिट दे रही है। भादवि की धारा 302 में इनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है। लेकिन अब आरोपित अपने आपको बचा सकते हैं।
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अदालत ने सीबीआई से पूछा कि इस मामले में चार माह बाद फिर से नारको और ब्रेन मैपिंग की क्यों जरूरत पड़ी, अगर दोनों रिपोर्ट एक दूसरे के विरोधाभासी होते हैं, तो फिर किस पर विश्वास किया जाएगा। क्या इसके लिए कोई दिशानिर्देश है। मामले में अभी तक सब कुछ करने के बाद भी रिजल्ट नहीं मिल रहा है, तो यह काफी दुखदायी है।
इस मामले का खुलासा नहीं हुआ तो यह सीबीआई के साख पर भी सवाल खड़ा करेगा। यह मामला अब धीरे-धीरे हिट एंड रन केस की ओर से बढ़ रहा है। अदालत ने अपने पूर्व के कथन को दोहराते हुए कहा कि पहले झारखंड उग्रवाद से बहुत प्रभावित राज्य रहा है। लेकिन कभी भी न्यायिक पदाधिकारियों कोई आंच नहीं आई है। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था।
उसके बाद भी सीबीआई अगर इस मामले का खुलासा नहीं कर पाती है तो इस तरह की घटना दोबारा हो सकती है। लेकिन अदालत चाहती है कि इसके पीछे मुख्य षड्यंत्रकारी को कोर्ट में लाकर सजा सुनाई जाए ताकि ऐसी घटना दोबारा ना हो। अदालत ने पूछा कि क्या सीबीआई में आने वाले अधिकारियों को इस तरह के मामलों को सुलझाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग दी जाती है।
सीबीआई वित्तीय अनियमितता के मामले को बड़ी जल्दी से सुलझा देती है, लेकिन इस तरह के मामलों के खुलासा का सक्सेस रेट बहुत कम है। इस दौरान सीबीआई के अधिवक्ता ने कहा कि अब तो देश में सीबीआई के बाद एनआइए भी जांच एजेंसी बनी है। लेकिन इस पर अदालत ने कोई आदेश पारित नहीं कियाऔर मामले में अगली सुनवाई 28 जनवरी को निर्धारित की है।
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