Ranchi: JSSC News झारखंड सरकार की ओर से जेएसएससी ( राज्य कर्मचारी चयन आयोग) की नियुक्ति नियमवाली में संशोधन किया गया है। नई नियमावली को झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की गई है। दरअसल, झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातकस्तर संचालन संशोधन नियमवाली)-2021 बनाई गई है।
इसमें राज्य के संस्थानों से दसवीं और 12वीं पास होने वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा पेपर दो (भाषा पेपर) में 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को रखा गया है।
राज्य सरकार वर्ष 2015 के नियुक्ति नियमावली में नया संशोधन किया है। इसके खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। प्रार्थी कुशल कुमार और रमेश हांसदा की ओर से दाखिल याचिका में नई नियमावली को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अधिवक्ता अपराजिता भारद्वाज, कुमारी सुगंधा और तान्या सिंह ने बताया कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और 12वीं की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
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वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। क्योंकि देश की संधीय ढांचा की अवधारणा ही यही है कि कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी क्षेत्र रह सकता, व्यवसाय और जीवनयापन कर सकता है।
नई नियमवाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है। क्योंकि राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम ही हिंदी है। भाषा एवं धर्म के आधार पर राज्य के नागरिकों को बांटने एवं प्रलोभित करने का काम किया जा रहा है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं।
ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमवाली में निहित दोनों प्रविधानों को निरस्त किया जाए।
केंद्र सरकार के विभिन्न निर्देशों के अनुसार राजभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार को प्रोत्साहित किया जाना है। पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस भी मनाया जाता है। वहीं, झारखंड सरकार के सभी सरकारी कार्यकलाप भी हिंदी और अंग्रेजी में किया जाता है। इसलिए हिंदी और अंग्रेजी को भाषा पत्र से हटाया जाना असंवैधानिक एवं राजनीति से प्रेरित निर्णय है।