रांची। झारखंड हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने राज्य की नियोजन नीति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान प्रार्थी की ओर से बहस पूरी कर ली गई।
इसके बाद जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने 17 जुलाई को राज्य सरकार को अपनी दलील पेश करने का निर्देश दिया।
इस संबंध में सोनी कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्य सरकार के नियोजन नीति को चुनौती दी है।
सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने अदालत को बताया कि 17 मार्च 2020 को सरकार के उस दलील के बाद सुनवाई टाल दी गई थी कि ऐसा ही एक मामला
सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैै। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुनवाई निर्धारित की जाए।
उस मामले में 22 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी परिस्थिति में किसी के लिए शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैैं। वहीं, पांचवीं
अनुसूची में राज्यपाल को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने अदालत को बताया कि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला दे दिया है। ऐसे में राज्य सरकार की नियोजन नीति को रद करते हुए इसके तहत
की गई नियुक्ति को भी निरस्त किया जाए।
क्योंकि जनवरी 2020 को हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में अदालत के अंतिम आदेश से नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित होगी। इसके बाद अदालत ने अगले
सप्ताह राज्य सरकार को पक्ष रखने का निर्देश दिया।
बता दें कि सोनी कुमारी की याचिका में कहा गया है कि राज्य के 24 में से 13 जिलों को अनुसूचित जिलों में रखा गया है। गैर अनुसूचित जिलों में पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग,
रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा और देवघर शामिल हैं।
सरकार की नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों के सभी पद उसी जिले के स्थानीय लोगों केलिए आरक्षित हो गयी हैं, जो कि असंवैधानिक है।